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मंगल-बिन्नू या !
. ( शालिनोवृत्त) .वामा-प्यारे हाँ हिए मध्य आके, . वारो सारी शृङ्खला ज्ञान लाके जागे मेरी बुद्धि गाऊं तुम्हारेनीके नीके सद्गुणोंको निहारे !
प्रेमासक्ता इन्द्र चक्राधिसारे, गाते तेरे हैं गुणोंको अपारे ! कैसे पाऊं पार मैं नाथ गाके
बौने पाते हाथ कैसे बढ़ाके !! तो भी स्वामी आपमें प्रेम साने, बैठा गाने गीत हूं मैं अज्ञाने; सेवा तेरे पादकी भक्ति धारे, हे तीर्थेश्वर पार्थ ! तेरे सहारे !
दाया कीजे हे प्रभो हो दयाला ! दीजे बोध हे विभो ! हो कृपाला!! जावे बाधा भाग सारी उदारो! पाऊं तेरा 'दर्श' भौ-सिन्धु तारो!!
--कामताप्रसाद जैन ।
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