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बनारस और राजा विश्वसेन । [९७ वृथा ही । इसलिए उन्होंने 'शङ्कराचार्य'का रूप धारण किया और लोगोंको वेद समझाना शुरू किये। इन्होंने जैनोंके मंदिरोंका विध्वंश किया, उनके शास्त्रोंको जलाया और उन सबको तलवारके घाट उतारा जो इनके मार्ग में आड़े आए।'
इसतरह यह ब्राह्मणोंकी गढ़ी हुई राजा दिवोदासकी कथा है । यद्यपि यह एक कथा ही है, पर इसका आधार ऐतिहासिक सत्य होना संभवित है । हमें मालूम है कि जैनियोंके २३ वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथको ही आजकल बहुतसे लोग जैनधर्मका संस्थापक ख्याल करते हैं; परन्तु वास्तवमें जैनधर्मका अस्तित्व इनसे भी पहलेका प्रमाणित हुआ है, यह प्रकट है। उपरोक्त कथामें भी कुछ ऐसा ही प्रयत्न किया गया मालूम होता है । ब्राह्मण ग्रन्थकार भगवान पार्श्वनाथ, महावीरस्वामी और महात्मा बुद्धका वर्णन यहां एक साथ करते प्रतीत होते हैं और आपसी द्वेषके कारण जैनधर्मके प्राचीन इतिहासका उल्लेख करना भी आवश्यक नहीं समझते हैं। साथ ही वह जैनधर्म और बौद्धधर्मको एक ही बतलाते हैं । इसका कारण इन दोनोंका अहिंसामई वेदविरुद्ध उपदेश देना ही कहा जासक्ता है; यद्यपि जैनधर्म और बौद्धधर्म दोनों ही अलग २ धर्म हैं यह प्रकट है ।।
ब्राह्मण कथाकारका अभिप्राय 'जिन' शब्दसे भगवान पार्श्वनाथसे ही है, *यह इसीसे प्रकट है कि वह उनके जन्मस्थान
१-एशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृष्ट १९१-१९४ । २-देखो हमारा 'भगवान महावीर और म० बुद्ध' नामक ग्रंथ । *'आईने अकबरी'की जनकी वंशावलीमें हिन्दुओंके अनुसार 'जिन'का काल ईसासे पूर्व ९५० लिखा