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इस प्रकार विनयके गुण विशेष विनीत बनने से होने वाले लाभ (अविनीत से अलाभ) का संक्षेपमें वर्णन किया । अब आचार्य भगवंत के गुणों को कहता हूँ। वह एकाग्र चित्त से सुनो।
'आचार्य भगवंत के गुण'
वुच्छं आयरियगुणे अणेगगुणसयसहस्सधारीणं । ववहारदेसगाणं सुयरयणसुसत्थवाहाणं ॥ २२ ॥
शुद्ध व्यवहार मार्ग के प्ररूपक, श्रुतज्ञान रूप रत्नों के सार्थवाह और क्षमादि अनेक लक्ष गुणधारक ऐसे आचार्य भगवंत के गुणों का स्वरुप संक्षेप में कहूँगा
पुढवीव सव्वसहं मेरूव्व अकंपिरं ठियं धम्मे ।
चंदुव्व सोमलेसं ते आयरियं पसंसंति ॥ २३ ॥
भूमि के समान सर्वसहनशील, मेरु समान निष्प्रकंप-धर्म में निश्चल, और चन्द्र समान सौम्यता धारक आचार्य भगवंतो की ज्ञानी पुरुष प्रशंसा करते है । [ ऐसे गुण धारक आचार्य होते हैं ]
अपरिस्साविं आलोयणारिहं हेउकारणविहिण्णुं ।
गंभीरं दुद्धरिसं तं आयरियं पसंसंति ॥ २४ ॥
शिष्यादि के दोष प्रकट न करने वाले अपरिश्रावी, आलोचना योग्य, [जिनको निवेदन करने से पापोंकी शुद्धि हो ] हेतु-कारण विधि के ज्ञाता, गंभीर, परवादिओं से पराभव न पानेवाले ऐसे आचार्यों की ज्ञानी प्रशंसा करते हैं ।
कालण्णुं देसण्णुं, भावण्णुं, अतुरियं असंभंतं । अणुवत्तयं अमायं तं आयरियं पसंसंति ॥ २५ ॥
कालज्ञ, देशज्ञ, भावज्ञ धैर्यवान, असंभ्रांत, अनुवर्तक ( संयमादि में प्रेरक ) अमायावी आचार्य की ज्ञानी प्रशंसा करते हैं ।
लोइय वेइय सामाइएसु, सत्थेसु जस्स वक्खेवो । ससमयपरसमयविऊ, तं आयरियं पसंसंति ॥ २६ ॥
लौकिक, वैदिक और सामाजिक शास्त्रज्ञ, स्व समयज्ञपरसमयज्ञ ऐसे आचार्य की ज्ञानी स्तुति करते हैं । [ स्वसमय जिनागम, परसमयलौकिक ग्रंथ ]
पूर्वाचार्य रचित 'सिरिचंदावेज्झय पइण्णयं
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