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________________ उस चारित्र की शुद्धि के लिए प्रवचन माता के पालन में प्रयत्न पूर्वक उद्यम करो और सम्यगदर्शन - चारित्र और ज्ञानकी साधना में प्रमाद मत करो । चरणस्स गुण विसेसा, एए मइ वन्निया समासेणं मरणस्स गुण विसेसा, ओहियहियया निसामेह ॥ ११६ ॥ इस प्रकार चारित्र धर्म के गुणों के महान लाभों का संक्षेप में वर्णन किया । अब समाधि मरण के गुण वर्णन को एकाग्र चित्त से सुनो। मरणगुण जहअनियमियतुरए, अयाणमाणो नरो समारूढो । इच्छेइ पराणीयं, अइक्कंतु जो अकयजोगो ॥ ११७ ॥ सो पुरिसो सो तुरओ पुव्वं अनियमिय करण जोगेणं । दट्टूण पराणीयं, भज्जंति दोवि संगामे ॥ ११८ ॥ जैसे अशिक्षित अश्व पर सवार अशिक्षित सैनिक शत्रु सैन्य को जितना चाहे परंतु दोनों अशिक्षित होने से शत्रु शैन्य को देखते ही भाग जाते हैं । एवमकारिय जोगो, पुरिसो मरणे उवट्ठिए संते । न भवइ परीसहसहो, अंगेसु परिसहनिवाए ॥ ११९ ॥ इस प्रकार परिषहोंकों सहन करने में अनभ्यासी मुनि मृत्यु के समय शरीर पर आनेवाले रोगादि की तीव्र वेदना सहन नहीं कर सकता । पुव्वं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालंमि । भवइ य परिसहसहो, विसयसुहनिवारओ अप्पा ॥ १२० ॥ पूर्व में तपादि करनेवाला समाधिका इच्छुक मुनि मरण समय में भौतिक सुखों की इच्छा को रोकने से परीषहों को अवश्य समता पूर्वक सहन कर सकता है । पुव्विं कयपरिकम्मो पुरिसो मरणे उवट्ठिए संते । छिंदइ परिसहचमूं, निच्छयपरसुप्पहारेण ॥ १२१ ॥ पूर्वमें आगमोक्त विधि पूर्वक विगइ त्याग उनोदरी आदि तपद्वारा क्रमशः सब आहार का त्याग करनेवाला मुनि मरण समय में निश्चय नय रूप परशुके प्रहार से परीषह सेना को छेद देता है । [मेरी आत्मा शाश्वत है, सिद्ध समान है, शरीर से भिन्न है इत्यादि विचारणा यह परशु है ] पूर्वाचार्य रचित 'सिरिचंदावेज्झय पइण्णयं' २३
SR No.022597
Book TitleSirichandvejjhay Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya, Kalapurnasuri, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_chandravedhyak
File Size3 MB
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