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ಕಾತ್ರಾ
आदर्श बताकर चले गये तुम
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ओह विनोद मुनि आये आये चले गये तुम ॥
प्रेम-धार से पले हुए थे, सुख वैभव में ढले हुए थे।
फुल गुलाबी खिले हुए थे, ओह नव दीक्षित हँसा रूला कर चले गये तुम ॥
शोध प्राप्त कर सूत्र सार तुम, मोह माया का तोड़ तार तुम ।
स्वयं दीक्षा सोल्लास धार तुम, ओह त्यागी वीर सौर फैला कर चले गये तुम ॥
कैसा था वैराग्य तुम्हारा, कैसा था चरित्र तुम्हारा ।
कैसा था सौभाग्य तुम्हारा, ओह आदर्श मुनि आदर्श बताकर चले गये तुम ॥
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10.
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