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नटनी माफक आ संसार-रंगभूमि ऊपर केवा नाच-नृत्य करे छे ते समभावपूर्वक उभय निहाळता. संतसमागम अने तेमना उपदेशनुं श्रवण ए पण तेमनुं अहोनिश आवश्यक कर्तव्य बनी गयुं हतुं.
छेवटे भाग्य योगे तेमना संसारजीवननी ऊणप-कमी पण दूर थई. राणी श्रीमती ए दिव्य कांतिवाळा पुत्ररत्नने जन्म आप्यो. पुत्रजन्मनी वधामणीमां राजवीए द्रव्यने जळप्रवाहनी माफक वहेतुं मूक्युं राजाने पितावत् गणनारी प्रजाए पण पूर्ण उत्साहथी आ आनंद-प्रसंगमां पोतानो साथ पूर्यो. राजकुमारनुं नाम अतिमुक्तक राखवामां आव्यु. शुक्लपक्षनी द्वितीयाना चंद्रनी माफक ते प्रतिदिन वृद्धि पामवा लाग्यो. बालसुलभ काली-घेली वाणीथी अने विविध क्रीडा-कुतुहळथी ते राजकुमार सौ कोईने आनंद उपजावी पोता प्रत्ये आकर्षी लेतो. ___ भाग्यवान आत्मानी पूर्व तयारी ज अनेरी होय छे. तेमना आचार-विचार अने वर्तन विलक्षण रीते भिन्नभिन्न नजरे पडे छे. एकादो प्रसंग सांपडतां तेओ पोतानुं उच्च कक्षाए चडवानुं अधूरुं रहेखें कार्य पुन: शुरु करे छे अने सर्प जेम कांचळीनो त्याग करे तेम संसारसुखभोगोनो क्षण मात्रमा त्याग करे छे. दारुगोळाथी भरपूर तोपने एक मात्र चीनगारीनी ज जरूर रहे छे, चीनगारी प्राप्त थतां ज ते पोतानुं कार्य शरू करी दे छे तेम पूर्वजन्मना संस्कारी आत्माओने निमित्त मळतां ज पोतानुं मोक्षमार्ग प्रतिनुं प्रयाण लंबावे छे. बाळवय ए निरीक्षण वय छे. आ वयमां बाळक दरेके दरेक पदार्थोनुं निरीक्षण करी तेमांथी शिक्षण ग्रहण करे छे, अमुक प्रकार- तेनुं वलण निश्चित बनी जाय छे एटले ज लोकोक्ति छे के–“कुमळा छोडने जेम वाळीए तेम वळे."
अतिमुक्तक कुमारनी वय हवे छ वर्षनी थवा आवी हती, छतां तेनी निपुणता, चालाकी अने वाक्कुशळता दीर्घअनुभवी वृद्ध पुरुष जेवी हती. एकदा ते पोतानी उम्मरना बाळको साथे क्रीडा करी रह्यो हतो तेवामां गणधर श्रीगौतमस्वामी मंद मंद पगलां भरतां ईर्यासमितिपूर्वक ते बाजु ज आवी रह्या होय तेम जणायु. श्रीगौतमस्वामी नजीक आवतां ज तेणे भावपूर्वक नमस्कार को. उभयना नेत्रो मळतां ज अतिमुक्तकथी सहसा बोलाई जवायु के–“हे भगवन् ! हुं तमारा जेवो थईश.” पूर्वभवनी तैयारी विना, कुदरतना कोई अगम्य संकेत वगर आईं कथन शुं शक्य छ ? खरेखर ज्ञानीना रहस्यपूर्ण वचनो अने कर्मराजनी गहनता अज्ञ जनथी परखाती नथी. बाळकनी इच्छानो जवाब आपतां श्रीगौतमस्वामीए का के–“वत्स ! तारी हजु लघुवय छे. चारित्र तो खांडानी धार जेवू उग्र छे. चारित्रपालन एटले मीणना दांतथी लोढाना चणा चाववा जेवू छे.”
कुमारे प्रत्युत्तर आपतां का के–“भगवन् ! जो के हुँ शिशुं छु छतां मारो आत्मध्वनि कहे छे के - हुं जरूर तमारा जेवो थईश. आप मारे त्यां गोचरी अर्थे पधारो. आपने अनुकूळ अन्नपान तैयार छे. आपना पुनित पगलां करी मारा प्रासादने अने साथोसाथ मारा हृदयरूपी आवासने पवित्र बनावो.” अतिमुक्तकना आग्रहथी श्रीगौतमस्वामी तेनी साथे गया अने उचित आहार वहोरी पंथे पड्या .
श्रीगौतमस्वामी गणधर महाराजना गमन बाद अतिमुक्तकना हृदयमां मंथन शरू थयु. विचारधारा वेगपूर्वक शरु थई गई. एक ज मात्र लक्ष्यबिन्दु तेमनी नजर सामे तरवरवा लाग्यु- हुं
श्रीगच्छाचार–पयन्ना– १६