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________________ दीक्षा देवी ज पडे तो अपवाद तथा उत्सर्गमार्गनो विचार करवो. १ बालक - छ सात वर्षनो होय ते बालक कहेवाय. आवा लघुबाळने दीक्षा आपे तो जैनशासननी हीलना थाय संयमविराधना थाय स्वाध्यायनी हानि थाय तेमज आत्मघाती पण बने. बाळस्वभावसुलभ चंचळ चित्तना कारणे विशेष हलन-चलनथी अगर तो आवा-जावाथी जीवोनी विराधना थाय, संयमनी पण विराधना थाय, लोकमां पण अपभ्राजना-निंदा थाय. लोको कहे के–“आवा लघु बालकने दीक्षा आपी पण ते बालक तेमां शुं जाणे? खावा-पीवाथी आ बालक दुःखी थाय तो पण आ साधुओने दया आवती नथी. आ साधुओ तो निर्दय बनीने पोताना स्वार्थने माटे शिष्योनु जूथ वधारे छे.” लोकनिंदाना भय उपरांत दीक्षित बालकना मातपिता तेनी पासे आवे त्यारे पण ते तेना पुत्रने प्रलोभन आपतां नथीने? एवी शंकाथी ते लघुशिष्यनी बराबर तपास राखवी पडे, अने तेने परिणामे स्वाध्यायनी हानि थाय. जो बालकना माता-पिता रोषावेशमां आव्या होय तो दीक्षा - गुरुने हणवानो - मारवानो पण प्रयत्न करे अने तेथी आत्मविराधना पण थई जाय. आ बधा दोषोनो विचार करी बालदीक्षा न आपवी ते ज उचित छे. आ संबंधमां बालदीक्षाना हिमायती कोई कहेशे के–“अतिमुक्तने छ वर्षनी उमरे अने श्रीवज्रस्वामीने पण लघुवयमा ज दीक्षा केम आपी?" आनो प्रत्युत्तर ए छे के–“तेमने दीक्षा आपनारा आचार्य आगमव्यवहारी तेम ज ज्ञानी हता. कोई बालकने श्रेष्ठ लक्षणवंत जाणी, तेना द्वारा शासननी प्रभावना उद्योत थशे एम विचारी श्रेष्ठ आचार्य दीक्षा आपे तो तेमां दोष न जाणवो ए अपवाद मार्ग छे कारण के तेवो उल्लेख पंचकल्पभाष्य तथा चूर्णीमां करेल छे. कोईनी देखादेखीथी बालदीक्षा न आपवी ए उत्सर्गमार्ग छे. अइमुत्ता मुनि तथा श्रीवज्रस्वामीनु संक्षिप्त वृत्तांत नीचे प्रमाणे छेअतिमुक्तक कुमारनी कथा भारतवर्षना विशाळ नगरोमा पोलासपुरनुं स्थान महत्त्व- गणातुं. राजवी श्रीविजय अने राणी श्रीमती पोतानी प्रजाने स्वसंतान सदृश जाणीने तेनुं सारी रीते पालन करतां. वशपरंपराथी चाल्या आवता जैन धर्मना संस्कार उभय दंपतीमां एटला बधा सुदृढ हता के शासननी प्रभावना निमित्ते अवारनवार धार्मिक महोत्सवो योजाता. दीन के दरिद्र नजरे पडतां के तेनुं श्रवण थतां ज राजवी तेना दारिद्रय़ निवारणनो मार्ग योजतो अने ए रीते समग्र प्रजा राजवीनी राज्यप्रणालिकाथी संतुष्ट रहेती. पोलासपुरनी यश-पताका. पण देश-देशांतरमा विजयध्वजनी माफक, राजवीना गुणगान गाती फरफरवा लागी हती. ___ आ संस्कारसंपन्न दंपतीना जीवनमा समग्ररीते सुख होवा छतां एक मात्र खामी हती. 'सोनानी थाळीमां लोढानी मेख' ए उक्तिनी माफक संसारसुख भोगवतां बहु वर्षों व्यतीत थई जवा छतां संसारसुखना फलस्वरूप संतान तेमने प्राप्त थयुन हतुं. कर्मना अगम ने अचळ सिद्धांतोना जाणकार तेओ हता, तेथी न तो ग्लानि अनुभवता के चिंतामग्न रहेता. ऊलटुं प्रतिदिन तेओनी धर्मभावना ने धर्मकरणी वृद्धिगत भावने प्राप्त थती. कर्मराजा केवा केवा तमासा योजे छे अने पराधीन जगज्जीवो श्रीगच्छाचार–पयन्ना- ७५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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