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साहित्योपासनानुं अप्रतिम फल छे. बालजीवोनी समजणंने माटे तेमणे आ गच्छाचारपयन्नानुं गुजराती भाषामां विवरण रच्युं. अमे आ ग्रंथनी विशेष उपादेयता माटे (१) मूळ गाथा, (२) तेनी संस्कृत छाया (३) मूळ गाथानो अर्थ अने (४) विस्तृत विवेचन-आ क्रम राख्यो छे.
“गच्छाचार” ए नाम ज ग्रंथनी सामग्री शुं छे ते आपोआप जणावे छे: साधु-साध्वीना आचारविशेषनुं अने कर्तव्यनुं ज आमां मुख्यत्वे विवरण छे. ग्रंथ रोचक बने ते माटे प्रसंगे प्रसंगे कथाओ पण आपवामां आवी छे.
आ गच्छाचारपयन्नानी हस्तलिखित प्रति स्व. श्री विजयभूपेन्द्रसूरिजी महाराजना जोवामां आवी. तेमणे तेने जेनोपकारी जाणी मुद्रित करवानी इच्छा करी तेवामा ओ स्वर्गवासी थया. त्यारबाद व्या. वा. वर्त्तमानाचार्य श्री विजययतीन्द्रसूरिजीनी अध्यक्षतामां स्व. श्री विजयभूपेन्द्रसूरिजीना ग्रंथाने प्रकाशित करवा माटे “श्री भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य समिति” नी स्थापना थई. तेना कार्य माटे (१) साहित्यरसिक उपाध्याय श्री गुलाबविजयजी महाराज (२) तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी महाराज (३) शांतमूर्ति श्री हंसविजयजी महाराज अने (४) मुनिश्री कल्याणविजयजी महाराजनी नियुक्ति करवामां आवी.
आ समितिए अत्यारसुधी १७ ग्रन्थो प्रगट कर्यां छे; आ गच्छाचारपयत्रो ए पंदरमो ग्रन्थाङ्क छे. अत्यार सुधीना प्रकाशनोनी माफक आ ग्रन्थ पण समाजना आदरने पात्र थशे. आशा छे के-गुणग्राही सज्जनों आ ग्रंथनो सविशेष लाभ लई अमारो प्रयास सफळ करे.
आचार्यश्रीनी जूनी गुजराती भाषाने रोचक ने शिष्ट भाषामां मूकवा माटे भावनगरनिवासी पंडित बालुभाई रुगनाथे करेल सुप्रयास माटे आभार मानवामां आवे छे. मुद्रणकार्यमा सारी काळजी राखवा आनंद प्रेसना मालिक शेठ गुलाबचंद देवचंद पण धन्यवादने पात्र छे.
प्रूफ सुधारवा विगेरेमां पण पूरती काळजी राखवा छंता द्दष्टिदोष अने प्रेसदोषने कारणे कंई खामी रही गई होय तो वाचकवर्ग सुधारी वांचवा कृपा करे..
वि. सं. २००२
आषाढी
पूर्णिमा
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संचालक
श्री भूपेन्द्रसूरि जैन साहित्य समिति वाया- एरणपुरा मु. पो. आहोर (मारवाड़)
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