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प्रथमावृत्ति प्रकाशन के अवसर पर
। आदि--वचन जैन वाङ्मय एक महासागर सद्दश छे. जेम महासागरनो पार न पामी शकाय तेम जैनसाहित्य-समृद्धिनी तुलना थई शकती नथी.
मानवी ए संयोगाधीन प्राणी छे । तेने सतत जागृत राखवा माटे आपणा परमोपकारी पूर्वपुरुषोए साहित्यनी अविरत उपासना करी छ । संस्कारी साहित्य ए संसारवासी जीवने माटे सुधा (अमृत) सद्दश छे । सुधापानथी जेम प्राणी अमरत्वने पामे छे तेम साहित्य-पानथी पण प्राणी निर्भीक बने छे. ___ पंचमकाळना प्रभावे प्राणीओनी मतिमंदता थवा लागी अने परिणाम जैन वाङ्मयने चार विभागमां वहेंची नाखवामां आव्यु (१) द्रव्यानुयोग, (२) चरणकरणानुयोग, (३) गणितानुयोग अने (४) कथानुयोग. .. बालजीवोने कथानुयोग विशेष रुचिकर थाय छे एटले आपणा साहित्यमां कथा-ग्रंथो विपुल प्रमाणमां रचाया छे; साथोसाथ आचारनुं ज्ञान पण अत्यावश्यक छे. कडुं छे के-आचार: प्रथमो धर्मः । आ श्री गच्छाचारपयन्नो चरण-करणानुयोगनो ग्रंथ छे.
कोई पण ग्रंथनी प्रामाणिकतानो आधार तेना कर्तापुरुष ऊपर अवलंबे छे. आ श्री गच्छाचारपयनो पण पूर्वपुरुष प्रणीत छे. सामान्य नियम एवो छे के पयन्नानी रचना गणधरमहाराजा के भगवंतना हस्तदीक्षित शिष्य करे छे. एटले आ पयत्नानी प्रामाणिकता माटे अंश मात्र आशंकाने स्थान रहेतुं नथी. ___आ गच्छाचारपयन्नामां साधु-साध्वीना विस्तारपूर्वक आचार-विचार दर्शावेल छे. आ पयन्ना ऊपर श्रीमद् आनंदविमलसूरिजी-शिष्य श्री विजयविमलगणिए संस्कृत टीका रची
सौधर्मबृहत्तपोगच्छीय, क्रियोद्धारक, जगत्पूज्य श्री मद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजीनी साहित्यसेवाथी जैनसमाज अज्ञात नथी. तेमणे पोतानुं समस्त जीवन साहित्य पाछळ न्योछावर करी दीधुं हतुं. “अभिधान राजेन्द्र कोष” जेवो अजोड ग्रंथ ए एमनी