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________________ गाथार्थ-जेवी रीते अतिशय कुशळ वैद्य पण पोतानो व्याधि बीजा वैद्यने जणावे छे अने ते अन्य वैद्ये दर्शावेल व्याधिना प्रतिकाररूप कर्मने आचरे छे तेवी रीते आलोचना ग्रहण करनार सूरि पण पोताना पापर्नु अन्य आचार्यमहाराज पासे प्रकाशन करे अने तेमणे जणावेल तपश्चर्यादि क्रिया विधिपूर्वक अंगीकार करे. विवेचन-वैद्य विचक्षण होय, वैदकशास्त्रादिकमां प्रवीण होय, अनेक प्रकारना औषधो-भस्म, अवलेह, चूर्ण विगेरेमा प्रवीणता धरावतो होय, अनेक व्यक्तिओना व्याधिओ, निवारण कर्यु होय, अनुभवी होय, वृद्ध वयनो होय, चिकित्सा करवानी प्रणालिकामां पारंगत होय, निदान करवामां निपुण होय-आवो कुशळ वैद्य पण जो बीमार पडे, मांदो थाय तो ते तरत ज अन्य वैद्यनी सलाह ले छे, पोताना व्याधिनो सर्व व्यतिकर कहीने तेनो उपाय पूछे छे अने पोतानी पासे विविध प्रकारनां उत्तम औषधो होवा छतां पण तेनी पासेथी ज औषध ले छे अने परिणामे पूर्ववत् स्वास्थ्य प्राप्त करे छे तेम ज्ञानवंत, आलोयण आपनार, शास्त्रादिकमां कुशळ एवा आचार्ये पण पोताने लागेला अतिचारनी आलोयणा अन्य गीतार्थ पासे ज लेवी ए ज हितकर अने आत्मकल्याणनो मार्ग छे. हवे सद्गुरुनु स्वरूप दर्शावतां कहे छे के देसं खित्तं त जाणित्ता, वत्थं पत्तं उवस्सयं । संगहे साहुवग्गं च, सुत्तत्थं च निहालई ॥ १४ ॥ [देशं क्षेत्रं तु ज्ञात्वा, वस्त्रं पात्रं उपाश्रयम् । संगृहणीत साधुवर्गं च, सूत्रार्थं च निभालयति ॥ १४ ॥ गाथार्थ-देश, क्षेत्र, द्रव्य, काळ अने भावने जाणीने वस्त्र, पात्र अने (स्त्री, पशु के पंडक-नपुंसक वगरनो) उपाश्रय संग्रहे तथा साधु-साध्वीना समूहनुं सारी रीते संरक्षण करे तेमज सूत्रार्थनु चितवन करे तेने सारा-मोक्षमार्गवाही आचार्य जाणवा. विवेचन-सारा आचार्य देश, क्षेत्र, द्रव्य, काळ अने भावने सारी रीते जाणे, अने जाणीने वस्त्र, पात्र, वसति तथा साधु-साध्वीना समूहने संग्रहे-तेनुं परिपालन करे. माळवादि देशोनुं स्वरूप जाणे. क्षेत्र संबंधी विचार करे के क्षेत्र लुखं छे के रसाळ एटले के सर्व प्रकारनी वस्तुओ मळी शके तो रसाळ अने न मळे तो लूटुं समजवं, अथवा तो जैनधर्म प्रत्ये श्रद्धाळु छे के अश्रद्धाळु ते पण जाणे. विविध क्षेत्रमा बौद्ध, सांख्यादिक कया कया धर्मनो विशेष प्रचार छे तेनुं ज्ञान धरावे. ग्लानादिक साधुओने वसवा लायक छे के नहीं अगर तो ग्लानादिकने योग्य आवश्यक पदार्थो प्राप्त थई शकशे के नहीं ते जाणे. वळी द्रव्य एटले आहारादि वस्तुओ मळी शकशे के नहीं तेनो विचार करनारा होय. काळ संबंधी विचारणा करतां सुकाळ के दुष्काळनो विचार करे-जाणे भाव एटले भिन्न भिन्न क्षेत्रवासी जनो उदार छे के कृपण, साधुओने जोईने रंजित थाय तेवा छे के मुख मरडे तेवा छे ते संबंधी ज्ञान धरावे. ऊपर जणावेल व्यतिकरना ज्ञाता आचार्य वस्त्र, पात्र अने उपाश्रय (साधुओने योग्य निवासस्थान) संग्रही राखे-तेनी व्यवस्था करी मूके कोई क्षेत्रमा वस्त्रादिक मळे, श्रीगच्छाचार-पयन्ना-६१
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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