________________
मोगलजातिनी सुंदरीओ तो खूबसूरत परी जेवी होय छे, दक्षिणी लोकोनी स्त्रीओ सुंदर चहेरावाळी अने नित्य स्नान करनारी होय छे, नागर लोकोनी स्त्रीओ अत्यंत सुघड होय छे. एवी विधविध देशनी सुंदरीओना वर्णन करे. आ उपरांत स्त्रीओनां शृंगार, अवयवो विगेरेने लगती वात करे स्त्रीकथा.
भक्तकथा – (भोजनकथा) कोईना जमणवारने लगती वात करे के अमुकना जमणवारमां मिष्टान्न सारुं थयु हतुं, शाक तम-तमाटवाळं हतुं, पेंडा घणा ज सारा हता विगेरे विगेरे वात करे ते
भक्तकथा.
ऊपरनी चारे कथाओ परत्वे विपरीत बोले एटले के निंदा करे ते पण विकथा ज कहेवाय; जेके राजा तो पापी छे, निर्दय छे, विषयी छे; अमुक देश तो क्लिष्ट छे, लोको दुराचारी छे; अमुक स्त्री तो आचार वगरनी ने विषयलंपटी छे, कंकासी तेमज क्रोधी छे; अमुक भोजन तो अस्वादिष्ट छे, मीठाई तो गंधाई गयेली छे, शाक सडेलुं छे. इत्यादि इत्यादि वार्तालापो करवामां रच्योपच्यो रहे ते पण विकथानो ज प्रकार छे.
.
आवी रीते प्रमादनां पांचे प्रकारोनुं जे सेवन करे छे ते कर्मरूपी अग्निमां हरहमेश बळ्या करे छे, तेने रोग-संतापादि परिताप उपजे छे, मरणादिक महाभय रहे छे अने संसाररूपी कारागारना बंधनमां जकडावुं पडे छे. आवी घोर विटंबनामांथी मुक्त करावनार जो कोई होय तो श्रीकेवळी भगवंते उपदेशेल धर्म ज छे, तेथी प्रखर शत्रु सदृश प्रमादनो परित्याग करी धर्मसेवन करवुं जोईए.' प्रमाद सेवे छे तेने नरकादि महादुःखो, महायातनाओ सहन करवी पडे छे, महाभयंकर ताड, पिशाचादिकनुं रूप जोवुं पडे छे, शब, हाडकां प्रमुखनी दुर्गंध सहन करवी पडे छे, अतिकडवो कष्टदायी आहार करवो पडे छे, फरसी तथा तलवार जेवा तीक्ष्ण शस्त्र परथी चालवुं पड़े छे, अत्यंत शीत तथा अत्यंत उष्णता सहन करवी पडे छे, अत्यंत बोजो- असह्य भार उपाडवो पडे छे-आवा आवा कष्टो प्रमादना परवशपणथी सहन करवा पडे छे. प्रमादनुं आवुं भयप्रद स्वरूप समजीने जे कोई महाव्रतनुं पालन करे, इंद्रियोने दमे, मनने काबूमां राखे, श्रावक धर्म पाळे, शुद्ध समकितधारी बने ते मनुष्य मरण पामीने देवलोकमां जाय अने त्यांथी च्यवीने पण सुख-संपत्ति भोगवी, धर्माराधन करी छेवट अक्षयसुखनो भोक्ता थाय.
आवी रीते प्रमाद सेववाथी अशुभ फळ अने प्रमादनो परित्याग करवाथी देवलोकादिकनी प्राप्तिरूप शुभ विपाक - फल थाय तेने लगतुं जेमां वर्णन छे ते दशमुं पमायाप्पमायं जाणवुं.
११. नंदी – तेमां महामांगलिक मति, श्रुत, अवधि, मन: पर्यव अने केवळज्ञानए पांच प्रकारना ज्ञाननुं स्वरूप छे. आ सूत्र देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणकृत छे. मूळ श्लोक ७००. श्रीमलयगिरिकृत टीका ७७३५ श्लोकप्रमाणनी अने श्रीहरिभद्रसूरिकृत टीका २३१२ श्लोकनी छे. चूर्णि २००० गाथानी छे, टिप्पण ३००० श्लोकनुं छे.
१२. अनुयोगद्वार – चार प्रकारनां व्याख्यान करवानी पद्धति – रीतिनुं तेमां वर्णन छे. वळी
श्रीगच्छाचार - पयन्ना— १८