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जो अभिवर्द्धित वर्ष होय तो वीश रात्रि गये छते गृहस्थने कहे अने चंद्र वर्ष होय तो एक मास वीश रात्रि गये छते गृहस्थने कहे. जे वर्षमां बे मास होय ते अभिवर्धित वर्ष कहेवाय. अधिक मास युगनी मध्यमां के अंतमां थाय छे. जो अंतमां होय तो बे आषाढ मास होय अने मध्यमां होय तो पोष मास होय.
शिष्य शंका करतां पूछे के-जो अभिवर्द्धित वर्षमां आषाढ अने पोष ए बे ज मास वधे छे तो अभिवर्धित वर्षमां वीश रात्रि अने चंद्र वर्षमां एक मासने वीश दिवस एम कहेवानो शो हेतु छे ? ए बन्ने मास चातुर्मासमां तो आवता नथी. गुरू तेनो प्रत्युत्तर आपतां जणावे छे के-आषाढ मास ग्रीष्म ऋतुमां वधे छे तेथी ते मास ग्रीष्म ऋतुमां गयो जाणवो. अने तेथी ज अभिवड्डियवरि वीसरातियं । एवो पाठ छे. आषाढी पूर्णिमाएं डगलादिक ग्रहण करे, पर्युषण कल्प कहे अने पांच दिवस बाद आषाढ वदि (मारवाडी श्रावण वदि) पांचमे पर्युषण करे. एम कारणे पांच-पांच दिवस वधारे. आ रीते वधारतां - वधारता भादरवा शुदि पांचमने दिवसे पर्युषण करे. आषाढ पूर्णिमा पर्युषण करे ते उत्सर्ग मार्ग कहेवाय अने आषाढ वदि पंचमी के अन्य दिवसे करे ते अपवाद मार्ग कहेवाय. भादरवा शुदि पंचमीए तो अवश्य पर्युषणपर्व करवुं ज एक मास ने वीश दिवसमां पण जो चातुमाँस योग्य क्षेत्र न मळे ता छेवटे वृक्ष हेठळ पण पर्युषण करवा, पण भादरवा शुदि पंचमी उल्लंघवी नहीं.
शिष्य पुनः शंका करतां पूछे के-हालमां अपर्वतिथि भादरवा शुदि चोथने दिवसे पर्युषण म करवामां आवे छे ? आचार्य महाराज जवाब आपे छे के कारणिया चउत्थी । कारणे चतुर्थीए पर्युषण करवा पडे छे. शिष्य पूछे छे के - हे भगवंत ! एवं ते केवुं कारण आवी पडयुं के जेथी पांचमनी चोथ करवी पडी ? गुरू उत्तर आपे छे के - श्रीमान कालकाचार्ये ते प्रवर्तावेल छे. शिष्ये पुन: प्रश्न कर्यो के-कोण कालकाचार्य अने तेमने शा माटे पंचमीनी चतुर्थी करी ? गुरूए जणाव्युं के
श्रीमान् कालकाचार्य विहार करतां करतां उज्जैणी नगरीमां आव्या ने त्त्यां चातुर्मास रह्या. ते नगरीमां बलमित्र नामनो राजा हतो अने तेनो लघु बंधु भानुमित्र युवराज हतो. तेने भानुश्री नामनी बहेन हती अने बलभानु नामनो भाणेज हतो. बलभानु भद्रिक स्वभाववाळो अने विनयी हतो. साधुओनी वैयावच्च करवामां सदा तत्पर रहेतो. एकदा आचार्ये ते बलभानुने उपदेश आप्यो, धर्मनुं यथार्थ स्वरूप समजाव्युं, भविष्यना योगे ते उपदेश बलभानुना हृदयमां सचोट उतरी गयो. तेने संसारनी स्वार्थता अने असारता समजाणी अने तेणे आचार्य श्रीकालकसूरि पासे प्रवज्या ग्रहण करी. बलमित्र तथा भानुमित्रने आ समाचार मळतां ज तेओ क्रोधी बन्या अने चातुर्मास होवा छतां आचार्यने नगरी बहार काढी मूक्या.
बीजो पक्ष एम कहे छे के बलमित्र अने भानुमित्र कालकाचार्यना संसारी पणाना भाणेज हता. तेओ प्रतिदिन तेओनां व्याख्यानमां जतां अने तेनु बहुमान करतां. शैवधर्मी पुरोहितने आ पंसद न
श्रीगच्छाचार - पयन्ना— ३०७