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________________ बाहिट्ठियवसभैह्निं, खित्तं गाहित्तु वासपाउग्गम् । पं हित्तु ठवण, वासाणं सुद्धदसमीए ॥ ७ ॥ इत्थ य अणभिग्गहियं, वीसइरायं सवीसई मासम् । तेण परमभिग्गहियं, गिहिणायं कत्तिओ जाव ॥ ८ ॥ असिवाइकारणेहिं, अहवा वासं न सुट्टु आरद्धम् । अहिवढयंमि वीसा - इयरेसु ससीसई मासो ॥ ९ ॥ एत्थ उ पणगं पणगं, कारणियं जा सवीसई मासो । सुद्धदसमीठियाणं, आसाढी पुण्णिमोसरणम् ॥। १० ।। आषाढ पूर्णिमाए चातुर्मास रहेवुं. एटले के जे स्थळे चातुर्मास करवुं होय ते स्थानमां आषाढ पूर्ण प्रवेश करने कार्तिकी पूर्णिमा सुधी वास करवो. अपवाद तरीके कार्तिक वदि दशम (मारवाडी मागशर वदि दशम) सुधी पण रही शकाय. केटलाको आ दश दिवसनी वृद्धिने अंगे बे दश रात्रि (वीश दिवस) अधिक गणीने मागशर मास पर्यन्त रहेवानी छूट माने छे. Sharad गाम या नगरमा प्रवेश करवो ते संबंधी हकीकत जणावतां कहे छे के-जे स्थळमां आषाढ मासकल्प कर्यो त्यां अथवा अन्यत्र सामाचारी भावना कहेवी. पछी पर्युषणा कल्प आषाढ शुदि दशमी वर्षास्थापना करवी. केटलाक आषाढ वदि पांचमे (मारवाडी श्रावण वदि पांचमे) वर्षाकाळ सामाचारी स्थापवानुं कहे छे. आ प्रमाणे आषाढ मासनी पूर्णिमाए अगर तो आषाढ वदि पांचमे पर्युषणा कल्प करीने रहे तो पण जो कोई गृहस्थ चातुर्मास संबंधी पूछे तो संदिग्ध उत्तर आपवो, एटले के “हजी अमारे चातुर्मास रहेवानुं निश्चित नथी” आ प्रमाणे जवाब आपे. आ प्रमाणे एक मास ने वीश दिवस पर्यन्त संदिग्ध उत्तर आपवो. आवी रीते संदिग्ध उत्तर आपवानुं कारण शु ? ते जणावतां कहे छे के - ते स्थळमां अचानक कोई उपद्रव उपस्थित थाय, वरसाद शारो न वरसे एक मास ने वीश दिवसमां कंइ अमंगलिक कार्य थाय, राजा दुष्ट होय, पाखंडीओनुं जोर होय इत्यादिक अनेक कारणो होय छतां पण जो साधु चातुर्मास रहे तो जिनआज्ञानो भंग कर्यो कहेवाय. “अमे अहीं चातुर्मास रह्या छीए” आ प्रमाणे गृहस्थने जणाव्या बाद उपर्युक्त कारणो आवी पडये छते विहार करवो पडे तो लोकोमां जैन शासननी हीलना थाय. अने मिथ्यात्वी लोको उपहास करतां कहे के साधुओ जणावतां हतां के अमे तो सर्वज्ञ-पुत्र छीए तो तेमनुं सर्वज्ञपणुं क्यां गयुं ? पहेलां कह्यं के अमे चोमासुं रह्या छीए अने हवे संकट आवतां चाल्या गया-तेओनुं मृषावादीपणुं तो जुओ. वळी निश्चित रीते कहे के-अमे चोमासुं रहेवाना छीए तो पण मुश्केली आवे कारण के-लोको जाणे के साधु चोमासुं रह्या छे माटे वर्षाद सारो आवशे, नवुं धान्य घणुं पाकशे एम धारी जूनुं धान्य वेची नाखे, छापरा चळावे, खेडूतो हळ विगेरे तैयार करे, व्यापारीओ तल पीलावी तेल कढावे इत्यादि घणा आरंभ - संमारंभादिकना कार्यो थाय तेना निमित्तभूत साधुओ थाय अने दोषभागी बने.. श्रीगच्छाचार - पयन्ना— ३०६
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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