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________________ नीचेना माणसो आचरे छे. गच्छमां वडेरी साध्वीनो वर्ताव संवेगरसाई न होय तो तेनी प्रतिभा अन्य साध्वीओ ऊपर न पडे तेटला खातर ज शास्त्रकारे पहेलुं विशेषण ए आप्यु के-ते वैराग्य रंगमां लीन होवी जोईए. साथे वसनारी साध्वीओने तेनो डर-भय लागवो जोईंए, कारण के तेवो भय होय तो लघु शिष्यादिक कई पण अकार्य करतां संकोच पामे. आवो भयभीत परिवार होय ते बीजुं लक्षण का, छतां पण कोई साध्वी भूलने पात्र बनी तो तेने उग्र प्रायश्चित्त आपतां संकोच न राखे. जो ए प्रमाणे एक बार अपराधनी शिक्षा न करे तो देखादेखीथी या तो गुरुणीनी नबळाई जाणी जईने अन्य साध्वीओ भूल करवा प्रेराय माटे मुख्य साध्वीए कारण प्रसंगे पोतानी सत्तानो उपयोग करवो जोईए, एटले के आलोचना आपवी. गच्छनी सारसंभाळ करतां जे शेष समय रहे तेमां पांच प्रकारनो स्वाध्याय करे अने चार प्रकारना ध्यान पैकी बे धर्म अने शुक्ल ध्यावे. जेम एक गृहस्थ पोताना कुटुंबना पालनार्थे सर्व प्रकारनी चिंता धरावे छे तेम मुख्य साध्वीए पण पोताना परिवारनी साध्वीओना उपकारार्थे निर्दोष वस्त्र, पात्र, औषध, ज्ञानोपगराण विगेरे वस्तु ओनो संग्रह करी राखवो जोईए. आ प्रमाणेना लक्षणो जे साध्वीमां होय ते महत्तरिका पदने लायक गणाय छे. वचनगुप्तिने आश्रयीने साध्वीए केवु वर्तन करवू जोईए ते त्रण गाथावडे बतावे छे– जत्थुत्तरपडिउत्तर, वडिआ अज्जा उ साहुणा सद्धिम् । पलवंति सुरुठ्ठावी, गोअम! किं तेण गच्छेण? ॥१२९ ।। जत्थ य गच्छे गोयम !, उप्पण्णे कारणंमि अज्जाओ। गणिणीपिट्ठिठिआओ, भासंती मउअसद्देण ।।१३० ।। माऊए दुहिआए, सुण्हाए अहव भइणिमाईणम् । जत्थ न अज्जा अक्खड़ गुत्तिविभेयं तयं गच्छम् ॥१३१ ।। [यत्र उत्तरं प्रत्युत्तरं, वृद्धा आर्याः साधुना सार्धम्। प्रलपन्ति सरोषा अपि, गौतम ! किं तेन गच्छेन? ॥१२९ ॥ यत्रच गच्छे गौतम! उत्पन्न कारणे आर्याः । गणिनीपष्टिस्थिता, भाषन्ते मृदुकशब्देन ॥१३० ॥ मातु: दुहितुः स्नुषायाः, अथवा भगिन्यादीनाम्। यत्र न आर्या आख्याति, गुप्तिविभेदं सको गच्छः ॥१३१॥] गाथार्थ-जे गच्छमां मुख्य या तो वृद्ध साध्वी कलह के खेदवश थईने उत्तर-प्रत्युत्तर करे तेमज क्रोधवश थईने जेम तेम प्रलाप करे तेवा गच्छथी हे गौतम ! शुं प्रयोजन अथवा तेवा गच्छने हुं गच्छ कहेतो नथी. हे गौतम ! जे गच्छमां कार्य प्रसंगे लघु साध्वीओ मुख्य साध्वीनी पाछळ रहीने स्थविर गीतार्थ प्रमुखनी साथे सहज, सरळ अने निर्विकार वाक्योवडे मृदु वचन बोले तेज वास्तविक गच्छ जाणजे. वळी वगरकारणे स्वपरवर्गमां ‘आ मारी माता छे, आ मारी पुत्री के पौत्री छे, आ मारी बहेन छे' श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २९८
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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