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के-षड्जीवनिकायनी यतनामां बेदरकार रहे. धर्मकथाने स्थाने परस्पर के विधवादिक स्त्रीयोनी साथे राजकथा, भक्तकथादिक चार प्रकारनी विकथा करे, गृहस्थना कार्यसंबंधी चिंता राखे, गृहस्थ आवे तो तेने बेसवा आसन आपे, पोते गृहस्थने घरे जाय त्यारे चाकळा, गादी प्रमुख ऊपर बेसे, गृहस्थना घरमा आंटो फेरो मारे, गृहस्थनी रूबरूमां के पाछळ खुशामत करे, तेना स्वजनोनी प्रशंसा करे, गृहस्थनी साथे रातदिवस वातो ज कर्या करे. 'हे बाई तमे आ कार्य करो, तमारे आम करवू जोइए' ए प्रमाणे गृहस्थोचित कार्यमा आसिक्त वधारे तेवी साध्वीने हे गौतम ! तारे उदरंभरी-फक्त पेट भरनारी ज जाणवी. कई साध्वी गणिनी पदने योग्य छे ते बे गाथावडे दर्शावे छे
समा सीसपडिच्छीणं, चोअणासु अणालसा। गणिणी गुणसंपन्ना, पसत्थपुरिसाणुगा ।।१२७ ॥ संविग्गा भीयपरिसा य, उग्गदंणा य कारणे। सज्झायज्झाणजुत्ता य, संगहे अविसारया ॥१२८ ॥ [समा शिष्यप्रतीच्छिकानां, चोदनासु अनलसा। गणिनी गुणसम्पन्ना, प्रशस्तपुरुषानुगता॥१२७ ॥ संविग्ना भीतपर्षद् च, उपदंडा च कारणे।
स्वाध्वायध्यानयुक्ता, सङ्ग्रहे च विशारदा ॥१२८ ॥] गाथार्थ-पोतानी शिष्याओने तथा प्रतीच्छिकाओने समान गणनार, चोयणा, पडिचोयणादिकमां आळस रहित, प्रशस्त पुरुषोने अनुसरनारी अने ज्ञान-दर्शन-चारित्रगुणसंपन्न साध्वीने महत्तरिका-गणिनीपद योग्य जाणवी. वैराग्य रंगमां लीन चित्तवाळी, भवभीरु परिवारवाळी, अपराध आव्ये सख्त शिक्षा करनारी, सज्झाय ध्यानमा सावधान सुसाध्वीओना उपकार्थे वस्त्र-पात्रादिकनो संग्रह करवामां कृशळ एवी साध्वी गणिनी पदने लायक छे.
विवेचन महत्तरिका-वडेरी साध्वीनां लक्षणो दर्शावतां कहे छे के-ते समभावी होय. पोतानी शिष्याओ तेमज ज्ञान या वेयावच्चादिक कारणोने अंगे आवेली अन्यगच्छीय साध्वीओ प्रत्ये समानभाव राखे. जेवी काळजी पोतानी शिष्याओना वस्त्र-पात्रादिक के औषध-भेषजनी राखे तेवी ज काळजी प्रतीच्छिका-अन्य शिष्याओ माटे राखे. चोयणा-पडिचोयणादिकवडे तेने प्रेरणा कर्या करे, तेमां कोई पण प्रकारनो प्रमाद न दर्शावे. जेम वहेतुं जळ निर्मळ रहे छे तेम चोयणा, पडिचोयणादिकवडे संयम शुद्ध रीते पळाय छे. चारित्रपालनमां कईंक प्रमाद थतो जोवाय के मुख्य साध्वी प्रेरणा करे. पंचम गणधर श्रीसुधर्मास्वामीए प्ररूपेलो शास्त्रविहित मार्ग ज शुद्ध छे एम मानीने जैन धर्मनुं यथार्थ पालन करनारी, तथा तेमणे दर्शावेला विधि-निषेधने अनुसरनारी तेमज ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना गुणोथी युक्त साध्वी गणिनी पदने योग्य छे.
'यथा राजा तथा प्रजा' ए सूत्रने अनुसारे मुख्य पुरुष- जेवू वर्तन होय छे तेवं आचरण तेनी
श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २९७