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________________ न रह्य, त्रीजी वार ते पीरसवा आवतां राजाए तेनी साडी ऊपर निशानी माटे कढीनो छांटो नाख्यो. पातालसुंदरी राजानी कपटकळा समजी गई, पण जाणे कशुं जाणती ज न होय तेम पीरसवा लागी. हवे पातालसुंदरीए राजानी पूरेपूरी मश्करी करवानो उपाय रच्यो. __पोते एक पंखो लई राजानी बाजुमां बेठी अने कहेवा लागी - हे राजन् ! आ जमवानी वस्तु केम जमता नथी. खरी वात तो ए छे के–वाणियाना घर- भोजन राजाने क्याथी गमे? वळी अनंगदेवनी सामुंजोई कहेवा लागी-तमारा घरमां कई एवी वस्तु छे के राजा तेने जोईने आश्चर्यमां डूबी गया छे ? राजा बराबर जमता नथी अने विचारमां बराबर तल्लीन थई गया होय तेम जणाय छे. पीरसेलुं भोजन पण हजु तेमनुं तेम ज पडेल छे. पण हा, हुं खरेखर भूली गई. मोटा पुरुषने भूख ज बहु अल्प होय छे. आ प्रमाणे मीठी मश्करी करी शीतळ जळ आप्युं राजा पण मुखवास लईने पातालसुंदरीनी तपासना विचारमां ने विचारमा जल्दी अन्त:पुरमा गयो. पातालसुंदरी पण कढीना छांटावाळी साडी बदलावी, तेना जेवी बीजी साडी पहेरी, सुरंगद्वारा भोयरामां आवी सूई गई. राजाए आवी जोयुं तो पातालसुंदरी घोर निद्रामां ऊंघती हती. साडीनो पालव जोयो तो कढीनो डाघो पण न मळे एटले निर्णय को के-पातालसुंदरी जेवी अनंगदेवनी पत्नी पण हशे. पछी पातालसुंदरीने जगाडतां ते पण कपटपूर्वक जाणे गाढ निद्रामाथी उठी होय तेम आळस मरडी, राजानी साथे पूर्वनी पेठे भोगविलास करवा लागी. खरेखर त्रण जगतमां स्त्रीचरित्रनो पार कोण पाम्युं छे? बाद पातालसुदंरीए सार्थवाहने का के-आपणे हवे आ देशमा रहेवू नथी, माटे स्वदेश जवानी तैयारी करो, हुं पण साथे आq छु. सार्थवाह तो पातालसुंदरीनी वात सांभळी डरवा लाग्यो. पोतानो प्रपंच खुल्लो थई जवानो अने साथोसाथ मृत्युदंडनी भीति पण जणाई. पातालसुंदरीए का के–तमे डरो नहीं. हुं कहुं तेम करो. सर्व लेण-देण संकेली ल्यो, व्यापार ओछो करी नाखो अने वहाणो तैयार राखो. तमारा पिताना घरनो पत्र आव्यो छे एम जणावी अत्यारथी ज राजा पासे रजा मागो. निरुपाये अनंगदेवे ते प्रमाणे कर्यु. राजाए घणो आग्रह को परंतु अनंगदेव तो पातालसुंदरीना वचनथी बंधायेल हतो. अतीव स्नेहना बदलामां राजाए कंईक मागवायूँ कहेतां तेणे जणाव्यु के-मारी पासे धन, धान्य विगेरे अखूट छे. जो तमे समुद्रकांठा सुधी मने वळावा आवो तो आ देशमां अने परदेशमां पण मारी प्रतिष्ठा वधे. राजाए ते कबूल कर्यु. ___पछी शुभ मुहूर्ते प्रयाण नक्की थयुं राजा, अनंगदेव अने पातालसुंदरीनी त्रणे पालखीओ समुद्र तरफ रवाना थई. पातालसुंदरीए पोतानी पालखी राजानी पालखी पासे रखावी अने तेनी साथे वातचीत शरू करी. हे राजन् ! आपना प्रसादथी मारा स्वामीए घणुं धन पेदा कर्यु छे. अमे रातदिवस आपने भूलवाना नथी, पण कोई वखते आ सेवकने संभारजो. राजाने अमारा जेवा वाणिया याद न आवे परंतु अमे तो आपने कदी विसरवाना नथी. अमारो अविनय-अपराध थयो होय तो माफ करजो. पातालसुंदरी एम अनेक प्रकारे वात करती जाय छे, पण राजा तो पोताना विचारमा गरकाव छे. आ ते पातालसुंदरी के कोण? वळी तेने विचार आव्यो के धिक्कार छ मने ! अनंगदेवनी श्रीगच्छाचार–पयन्ना- २४९
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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