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________________ चारित्रवाळा शिष्य हता. पोतानुं आयु नजीक जाणी यशोभद्रसूरिए श्रीभद्रबाहु अने सम्भूतिविजयने आचार्य पदप्रदान करी पोतानी पाटे स्थाप्या पोते अणशण स्वीकारी स्वर्गे संचर्या... बन्ने पट्टधरो सूर्य चन्द्रनी माफक मिथ्यात्व-तिमिरनो नाश करी गच्छन् रक्षण करता. वराहमिहिर पण सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि अनेक शास्त्रोनो अभ्यास करी ज्योतिषमां पारंगत थया, पण तेमनामां अभिमान विशेष हतुं. श्रीयशोभद्रसूरिए भद्रबाहुने आचार्य पद आप्यं अने पोताने न आप्यु तेथी तेने पोतानुं स्वमान घवातुं होय तेवू दुःख उपज्यु. श्रीयशोभद्रसूरिए तेनी प्रकृति ज्ञानथी जाणी हती तेथी तेने आचार्यपद न आप्यु, कारण के का छे के-“बूढो गणहरसद्दो, गोयममाईहिं धीरपुरिसेहिं । जो तं ठवइ अपत्ते, जाणंतो सो महापावो ॥१॥” एटले के 'गणधर' एवो शब्द गौतमस्वामी जेवा प्रभाविक ने उत्तम मुनिवरोए धारण को हतो तेवो श्रेष्ठ शब्द जो कोई गुरु अयोग्य व्यक्तिने जाणतो थको आपे तो ते गुरुने महापापी समजवा. वराहमिहिरने हवे साधुपणामां रहे पसंद न पड्यु. पूर्वकर्मना प्राबल्यथी ऊंचे चडेलो वराहमिहिरनो आत्मा अध:पात करवा तैयार थयो. कर्मनी गति खरेखर विचित्र छे ! जैन साधुना वेशनो त्याग करी ते गृहस्थी बनी गयो. कहेवत छे के-प्राण ने प्रकृति साथे ज जाय अर्थात् प्रकृति (स्वभाव) कदापि न बदलाय. का छे के–“प्रकृत्या शीतलं नीर-मुष्णं तद् वह्नियोगत: । पुन: किं न भवेच्छीतं, स्वभावो दुस्त्यजो यत: ॥१॥" प्रकृतिथी पाणी शीतळ छे, परंतु अग्निना संसर्गथी ते उष्ण बने छे; पण शुं पाछु ते शीतळ नथी बनी जतुं? अर्थात् ठंडं थई जाय छे. खरेखर शुभाशुभ पडेल स्वभावनो त्याग करवो ते दुष्कर छे. हवे वराहमिहिरे पोते भणेल सूर्यप्रज्ञप्ति प्रमुख ग्रन्थोमांथी उद्धरीने सवालाख श्लोकप्रमाण “वाराहीसंहिता” बनावी पोते ज्योतिषवेत्ता बन्यो. लोकोने कहेवा लाग्यो के-हुं बार वर्ष सुधी सूर्यमंडळमां रह्यो छु. सूर्ये मारा ऊपर महेरबानी करी मने ज्योतिषना प्रचारने माटे पृथ्वी ऊपर मोकल्यो छे. ब्राह्मणोए तेनु कथन स्वीकारी लीधुं अने धीमे धीमे तेनी प्रतिष्ठा वधी, कारण के अज्ञानी लोकोने भोळववा ए कई मोटी वात नथी. ते मंत्र-तंत्रादिकथी अने मोहनीय विद्याथी लोकोने चमत्कार पमाडतो. राजा पर्यंत तेनी कीर्ति प्रसरी गई. राजाए तेने पोतानो पुरोहित बनाव्यो. तेवामां श्रीभद्रबाहुस्वामी पोताना परिवारयुक्त प्रतिष्ठानपुरना उद्यानमां समवसर्या, राजा तथा प्रजाजन तेमने वांदवा गया. राजानुं मान साचववा वराहमिहिर पण साथे गयो. राजा भद्रबाहुनी देशना सांभळी रह्यो हतो तेवामां राजपुरुषे वधामणी आपी के-युवराजनो जन्म थयो छे. राजाने वृद्धवय थया छतां पुत्र नहोतो तेथी आ वधामणी सांभळी तेने अतीव हर्ष थयो. तरतज पासे बेठेला वराहमिहिरने राजाए का के-राजकुमारनी जन्मकुंडळी बनावो अने ते केवो विद्यावंत, बुद्धिमान अने आयुष्यवाळो थशे ते जणावो. भद्रबाहुस्वामी पण ज्योतिषना श्रेष्ठ ज्ञाता छ, तमो पण विचक्षण छो, तो तमे बंने विचार करीने मने कहो. वराहमिहिरे गणत्री करी जणाव्यु के-राजपुत्र सो वर्षना आयुवाळो, अढार विद्यानो पारगामी अने पुत्र-पौत्रादिकने पूजनिक थशे. बाद राजाए श्रीभद्रबाहुस्वामी प्रत्ये जोयु. भद्रबाहस्वामी जाणता हता के-जिनमतमां निमित्त कहेवानो निषेध छे, छतां राजा प्रमुख लोकोमा जैन शासननी प्रभावना करवा माटे तेमणे का के-आ • श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २२५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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