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________________ तेना पग नीचे एक देडकी चंपाईने मरी गई. साथे रहेल क्षुल्लक चेलाए तेमनुं ध्यान खेंच्यु के-तमारा पग नीचे देडकी मरी गई. तपस्वी साधुने क्रोध चढ्यो पण ए समये तो एटलुं ज का के-लोकोए मारी नाखी जणाय छे, छतां जो मारा पगथी मरी गई हशे तो सांजे प्रतिक्रमण समये आलोयण लइ लईश. सांज पडी, छतां तपस्वी साधु आलोचना कर्या विना ज प्रतिक्रमणमां बेठा एटले क्षुल्लक साधुए देडकी संबंधी आलोयणा लेवानु स्मरण कराव्यु, जेथी तेने अत्यंत क्रोध चड्यो अने तेने मारवा दोड्यो. क्षुल्लक साधु ऊभा थईने नाशवा लाग्या तेनी पाछळ दोडतां थांभला साथे तपस्वी साधुनुं मस्तक भटकायुं अने त्यां ज काळधर्म पामी ज्योतिषी देव थयो. त्यांथी च्यवीने पांचसो तापसोनो कुलपति, जे कनकखल आश्रममा रहेतो हतो तेना पुत्र तरीके उत्पन्न थयो. तेनुं कुल कौशिक होवाथी कौशिक एवा नामथी प्रख्याति पाम्यो. काळांतरे कुलपति मरण पाम्यो एटले कौशिक आश्रमपति बन्यो. ते अतिशय क्रोधी होवाथी तापसोए तेनुं चंडकौशिक एवं नाम राख्यु. तेने पोताना आश्रम प्रत्ये अत्यंत आसक्ति हती. कोईने पण ते फळफूल लेवा देतो नहीं, एटले धीमे धीमे सर्व तापसो चाल्या गया. एकदा चंडकौशिक लाकडी लेवा जंगलमा गयो तेवामां श्वेतांबिका नगरीना राजकुमारो तेना आश्रममा आवी चढ्या अने फळफूल विगेरे लई वाडीने भांगी नाखवा लाग्या. आ हकीकत कोईए चंडकौशिकने जणावतां तेने अत्यंत क्रोध चढ्यो अने कुहाडी लई ते कुमारोने मारवा माटे दोड्यो. तेने आवतो जोई राजकुमारो नाशी गया अने चंडकौशिक पण रस्तामा एक खाडो आवतां तेमां लपस्यो अने पोतानो ज कुहाडो पोताना मस्तकमां वागतां त्यां ने त्यां ज मृत्यु पाम्यो. मरीने ते ज स्थळे दृष्टिविष सर्प थयो. तेनी ज्वाळा एवी उग्र हती के नजरे थनारने पोतानी विषज्वाळाथी दग्ध करी नाखतो. तेना त्रासथी कोई पशु, पक्षी के मनुष्य पण ते स्थळमां आवी शकतुं नहीं. घणा काळे भगवानने आवेला जाणीने सर्प चिन्तववा लाग्यो के-शुं आ पुरुष मारु सामर्थ्य जाणतो नथी के अही आवीने ऊभो रह्यो छे ? पछी तेने सूर्य सामे नजर करी भगवान् प्रति पोतानी विषज्वाळा फेंकी पण तेनी कंई असर न थई. सर्प अचंबो पाम्यो. अत्यार सुधी पोतानी ज्वाळाथी कोई पण बच्यु नथी अने आ शुं? तेणे वारंवार सूर्य सामे जोई-जोईने विषज्वाळाओ परमात्मा प्रत्ये फेंकवी शरू करी पण जेम मृगथी सिंह पराजय न पामे तेम भगवन्त अचल रह्या एटले ते निर्दयीए दोडीने परमात्माना चरणमां डंख मार्यो अने विषथी व्याप्त थयेल परमात्मा मरण पामीने पोताना ऊपर न पडे तेम विचारी थोडे दूर जई ऊभो रह्यो परंतु महावायुथी जेम मेरु पर्वत चलायमान न थाय तेम प्रभु तो अकंप रह्या. हमणा विषनी असरथी भगवाननो देह पडी जशे तेम विचारतो सर्प वारंवार परमात्माना मुख प्रत्ये जोई रह्यो छतां भगवन्तनी मुखमुद्रा तो अमृत सरखी शांत अने सूर्य सरखी तेजस्वी हती. बाद परमात्माए सर्पने उद्देशीने का के- हे चण्डकौशिक ! प्रतिबोध पाम, मुंझा मा. परमात्माना वचन सांभळतां ज सर्पने ईहा प्रगटी अने छेवटे जातिस्मरण ज्ञान पण थयु. पोतानो पूर्वभव जाण्यो एटले पोताना कृत्योनी, अपराधनी निन्दा करता अने परमात्माने खमावता त्रण प्रदक्षिणा दईने तेणे अणशण स्वीकार्यु अने पोतार्नु मुख बिलमा राख्यु, रखेने कोई पण जीव पोतानी विषज्वाळाथी मृत्यु पामे. भगवन्तने घणा समय सुधी त्यां रहेला श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २२२
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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