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भ्रम छे. (२) पूर्णिमाना चन्द्रनी कांतिने हरी लेनार स्त्रीना मुखकमळने विषे जे अधर (ओष्ठ) रुपी मध छे ते किंपाकना फळनी जेम अत्यन्त विरस छे अने यौवनकाळ अथवा मनुष्यभवरूपी काळ व्यतीत थई गये छते झेरनी माफक अत्यन्त दुःखदाता छे. विषमिश्रित मिष्टान्न प्रथम स्वादिष्ट लागे परन्तु परिणामे प्राणघातक निवडे तेम स्त्री, मुखकमळ इत्यादि परिणामे नरकदायक छे. (३) अतिशय लांबो, चपळ नेत्रवाळो, वांकी गतिवान तेजस्वी अने नील कांतिवाळो सर्प डसे तो सारो परन्तु स्त्रीना चक्षुथी डसावू सारुं नहीं. सर्प डसे तो कोई पण स्थळेथी वैद्य मेळवी उपचार करी शकाय परन्तु आ स्त्री-नेत्रथी वीधायेलाने माटे कोई पण वैद्य के औषध नथी. (४) आ संसाररूपी समुद्रने तरी जवो ए कई मुश्केल नथी-जो वचमां आ स्त्रीरूपी दुस्तर विघ्न न होय तो. (५) जे कविओ स्त्रीओने अबला (बळ विनानी) कहे छे ते बुद्धि विनाना जणाय छे कारण के स्त्रीओए पोताना चपळ नेत्रकटाक्षथी इंद्र जेवाने पण महात कर्या छे तो तेवी स्त्रीओने अबला केम कहेवाय ? (६) वळी ते कोईनी साथे वात करी रही छे, कोईनी साथे विभ्रमविलासपूर्वक देखी रही होय छे अने अंत:करणमां कोई अन्य पुरुष- ज चिंतन चाली रह्यं होय छे-आवी स्त्रीने पोतानो वल्लभ कोण होई शके ? (७) अल्प हास्यथी, हावभावथी, शरमथी, भयथी, परांगमुख बनवाथी, नेत्रकटाक्षथी, वचनथी, ईर्ष्याथी, कलहथी, क्रिडाथी अगर समस्त प्रकारना भावोथी स्त्री बंधनरूप निवडे छे. (८) आवी रीते स्त्रीओना अनेक प्रकारना दुर्गुणो विचारी साधुपुरुषे तो तेने नव गजना नमस्कार ज करवा. स्त्रीना परिचय मात्रथी * मुनि पतित थया. केटलाक पुरुष पण दुर्गुणी होय छे, तेथी साध्वीए पण तेवाथी सावचेत रहेQ आ संबंधमा + मणिरथनुं दृष्टांत जाणवा योग्य छे. आ हकीकतना बचावमां पासत्थादिक कोई कहे के-आवा दोषो तो जे अज्ञानी होय तेने लागे, परंतु बहुश्रुत होय, जेने ज्ञान परिणमी गयुं होय तेने दोषोत्पत्ति नथी, तो तेने जवाब आपतां ग्रंथकार कहे छे के
.....___ * कोईएक आचार्यने अविनयी शिष्य हतो. आचार्य तेने तेना वर्तन संबंधी शिखामण आपे तो ते उलटो रोषे भरातो. गुरु एकदा रेवताचळनी (उत्तराध्ययनसूत्रमा श्रीसिद्धाचल कहेल छे) यात्राए गया त्यां पण आ शिष्य यात्राळ स्त्रीओ ऊपर कुदृष्टि करवा लाग्यो. गुरुए तेने निवार्यों एटले ते क्रोधित थयो. पोताने हितशिखामण आपनार गुरु ऊपर हवे तेने पूरो कंटाळो आव्यो एटले तेमने यमराज-सदनमां मोकली आपवानो निरधार करी तेणे यात्रा कर्या बाद पाछा वळतां गुरुमहाराज पर पाछळ रहीने एक पत्थरनो मोटो गोळो गबडाव्यो. परन्तु भाग्ययोगथी ते पत्थरनो गोळो आचार्यना बने पग वच्चे थईने निकळी गयो. गुरुए तेने उपालंभ आपतां कां के हे दुरात्मन् ! आ स्त्रीजातिथी ज तारो विनाश थशे.
गुरुए निर्भर्त्सना करवाथी ते त्यांथी चाल्यो गयो अने स्त्री रहित एकांत स्थाननी शोध करतो एक नदीने सामे किनारे जई आतापना लेवा लाग्यो. तेने कोई पण प्रकारे गुरु-कथन मिथ्या करवं हतुं. तेनी तपश्चर्या तीव्र हती. तेना उग्र तपना प्रभावथी नदीनो प्रवाह, तेनी तरफ वहेतो हतो तेने बदले बीजी दिशामां वहेवा लाग्यो एटले लोकोए तेनी 'कुलवालुक' एवा नामनी प्रसिद्धि करी.
देव-प्रभावयी श्रेणिक महाराजने दिव्यकंडल, अढार सरनो हार, दिव्य वस्त्रो अने सेचनक हस्तीनी प्राप्ति थयेल ते तेमणे पोताना पुत्र हल्ल-विहल्लने अर्पण करेल. कुणिकनी पत्नी पद्मावती हमेशां तेनी मागणी कर्या करती. श्रेणिकना मृत्यु बाद कुणिके हल्ल-विहल्ल पासे तेनी मागणी करी. कुणिक सर्वसत्ताधीश हतो एटले हल्ल-विहल्ल पोताना मातामह चेटक (चेड़ाराजा) ना आश्रये चाल्या गया. कुणिके तेओने सोंपी देवा कहेवराव्यु. चेटक महाराजाए शरणागत दोहित्रोने सोंपवानो इन्कार कयों, कणिके विशाला नगरी पर हल्लो कयों बने बाजु विपुल सैन्यसमूह एकत्र थयो. बंने महारथी अने समर्थ राजवी होईने एकबीजाथी गांठ्या जाय तेवा न हता. चेटक महाराजाने देवोए अमोघ बाण आपेल, के जेना प्रहारथी अवश्य मृत्यु
श्रीगच्छाचार–पयन्ना—१८०