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________________ उत्कृष्टी सात सागरोपमनी, चोथीमां जघन्य सात सागरोपमनी अने उत्कृष्टी दश सागरोपमनी, पांचमीमां जघन्य दस सागरोपमनी अने उत्कृष्टी सत्तर सागरोपमनी, छठ्ठीमां जघन्य सत्तर सागरोपमनी अने उत्कृष्टी बावीस सागरोपमनी तेमज सातमी नरके बावीस सागरोपमनी अने उत्कृष्टी तेत्रीस सागरोपमनी स्थिति छे. आ उपरांत परमाधामी विगेरेनुं वर्णन पण यथास्थित वर्णवी बताव्यं. गुरु नरक संबंधी आवुं सुंदर ने यथास्थित कथन सांभळी राजाए कह्यं ले - “शुं आपे पण स्वप्नमां नरक जोई छे ?” आचायें कह्यं - “ में स्वप्न जोयुं नथी, श्री जिनेश्वर भगवंतना आगमभाषित ज्ञानथी नरकादि स्वरूप यथार्थ समजाय छे." बाद पुष्पचूलाए पूछयुं- “हे भगवन् ! कया कर्मथी नरकगति पमाय ?” त्यारे अर्णिका पुत्र आचार्य कह्यं - "महारंभथी, महापरिग्रहथी, गुरुनी निंदा करवाथी, पंचेंद्रिय जीवना घातथी, मांसनो आहार तेमज रौद्र ध्यान करवाथी जीव नरकमां जाय छे." हवे देवे पुष्पचूलाने देवलोकनुं स्वरूप देखाडवा मांडयुं मणिमय विमानोनी शोभायमान श्रेणियो, शय्या, कल्पवृक्षोनो समूह विगेरे दर्शाव्या. वळी कानमा रत्नना कुंडलवाळा, मस्तक पर मुकुटवाळा, कंठमां हीराना हारवाळा, अतिशय कांतिवाळा, सर्व दिशाओने प्रकाशित करता, सदा सुशोभित वस्त्र सहित, निर्निमेष नेत्रवाळा, न करमाय तेवी पुष्पोनी माळा पहेरेला, देवी ओना परिवार शाथे विविध प्रकारनी लीला-क्रीडा करता, विधविध संगीतनो लाभ लेनारा, जळक्रीडा करनारा-आ प्रमाणे विविध विषयसुखो भोगवता देवोने पण तेणे स्वप्नमां दृश्यमान कर्या. आवुं स्वप्न जोई पुष्पचूला जागी उठी अने पूर्वनी माफक राजाने जणावतां तेणे सर्व दर्शनना पंडितोने बोलावी पुन: ते संबंधी प्रश्न कर्यो, त्यारे केटलाके कह्यं के- मिष्टान्न आहार करवो ते स्वर्गसुख समान छे, केटलाके उत्तम पटकुलादिनुं परिधान, केटलाकै उत्तम आसन के वाहनमां बेसवुं इत्यादि सासरिक सुखोने स्वर्गसुखनी उपमा आपी. आ सांभळी राणीए कह्यं के “आ सर्व पंडितो मिथ्या छे.” बाद अर्णिकापुत्र आचार्यने पूछतां ते ओए राणीए स्वप्नमां जे प्रमाणे जोयुं हतुं ते ज प्रमाणे सर्व हकीकत जणावी एटले राणी अतीव प्रसन्न थई. बाद राणीए देवलोकनी ऋद्धि अने तेनी प्राप्ति संबंधी प्रश्न करतां अर्णिकापुत्रे कह्यं के- “पहेला सौधर्म देवलोकमा बत्रीश लाख विमान छे, बीजा ईशानमां अट्ठावीस लाख, त्रीजा सनत्कुमारमां बार लाख, चोथा माहेंद्रमां आठ लाख, पांचमा ब्रह्म देवलोकमा चार लाख, छठ्ठा लांतकमा पचास हजार, सातमा महाशुक्रमां चालीश हजार, आठमा सहस्त्रारमा छ हजार, नवमा आनत अने दशमा प्राणत बन्नेमा चारसो अगियारमा आरण अने बारमा अच्युत ए बन्नेमां त्रणसो विमान छे. सम्यक् प्रकारे आराधेला बार व्रतरूप श्रावकधर्म अने पांच महाव्रतरूप साधुधर्मना पालनथी स्वर्गसुखनी प्राप्ति थाय छे. आ प्रमाणे वृत्तांत सांभळी राणी पुष्पचूला प्रतिबोध पामी एटले तेणे स्व-स्वामी पुष्पचूल पासे दीक्षा अपाववा माटे विज्ञप्ति करी त्यारे तेणे कह्यं के- “जो तुं दीक्षा लईश तो तारो वियोग हुं 9 श्रीगच्छाचार- पयन्ना- १७५
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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