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संबंधादिकनी उपयोगिता जणाव्या छतां वादी तर्क करे छे के – जेओ अज्ञानी छे तेओने वीतरागना वचनमां श्रद्धा होती नथी, वीतराग परमात्माए का ते साचुंज का छे तेवो तेमने ख्याल होतो नथी अने जो संशयथी प्रवृत्ति करवामां आवे तो ते संबंधादिक विना पण थई शके, अर्थात् 'ए शुं कहेशे?' एवी जेने जाणवानी इच्छा हशे ते तो संबंधादिक विना पण ग्रंथ सांभळशे, तेओनुं निवारण कोण करवानुं छे? माटे मारा मत प्रमाणे तो संबंधादिक हकीकत श्रोताओ माटे आवश्यक नथी. आ बधी हकीकतना परिहारपूर्वक ग्रंथकर्ता महाशय कहे छे के- शिष्टाचार तो राखवो ज जोइए, कारण के ग्रंथकर्ता जे हेतुथी ग्रंथनी शरूआतमा प्रयोजनादिक देखाड़े छे ते शिष्ट अनुकरण छे. आ संबंधी विशेष अधिकार न्यायग्रंथोथी जाणवो उचित छे.
हवे 'गच्छाचार-पयन्ना' ग्रंथना कर्ता शरूआतमां मंगलादि चारे हेतुओने दर्शावता पहेली गाथा कहे छे
नमिऊण महावीरं, तियसिंदनमंसिअं महाभागं । गच्छायारं किंची, उद्धरिमो सुअसमुद्दाओ ॥१॥ [नत्वा महावीरं, त्रिदशेंद्रनमस्थितं महाभागम् ।
गच्छाचारं किञ्चिद्-उद्धराम: श्रुतसमुद्रात् ॥१॥] गाथार्थ – देवेंद्र-इंद्रथी नमस्कार कराएल, महाप्रभावशाळी श्रीवीर परमात्माने प्रणाम करीने द्वादशांगीरूप श्रुत-सिद्धांतरूपी समुद्रमांथी साधुसमुदायरूपी गच्छनो ज्ञानाचारादि अथवा गणमर्यादारूप आचार स्वल्पमात्र उद्धरूं छु. १.
विवेचन - उपर्युक्त गाथामां वीर परमात्माने प्रणाम कर्या, पण वीर-महावीर एटले शुं? 'महावीर' शब्दनो शब्दार्थ एवो छे के-विशेषे करीने कर्मोने खपावे तेने वीर कहीए. पूर्वाचार्यकृत नीचेनो श्लोक पण ए ज अर्थने जणावतां कहे छे के
विदारयति यत्कर्म, तपसा च विराजते ।
तपोवीर्येण युक्तश्च, तस्माद् वीर इति स्मृत: ॥१॥ जे कर्मने विदारे-तोड़ी नाखे, तेमज तपश्चर्याद्वारा जे विशेष शोभे अने तप तथा वीर्यथी जे युक्त होय तेने वीर कहेवामां आवे छे.
बीजा वीरोनी अपेक्षाए जे महान्-श्रेष्ठ वीर ते महावीर चरम जिनपतिने नमस्कार को छे. महावीर नाम केवी रीते प्राप्त थयुं ते माटे शास्त्रोमां नीचे प्रमाणे उल्लेख मळी आवे छे.
ज्यारे वीर परमात्मानो जन्म थयो त्यारे तेमनो स्नात्राभिषेक करवा माटे तेमने मेरूपर्वत पर लई जवामां आव्या. जेम दरेक तीर्थंकरोने माटे बने छे तेम जळना* कळशो तैयार करवामां आव्या
* स्नात्रभिषेक समये इंद्रो, अग्रमहिषीओ अने बीजा देवोना कल अढीसो अभिषेक थाय छे. एक एक अभिषेकमां चोसठ हजार कळशो होय छे. एटले सर्व कळश संख्या एक करोड ने साठ लाख कळशनी थाय. दरेक कळश २५ योजन ऊंचो,१२ योजन पहोळो अने एक योजनना नाळचावाळो होय छे.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-४