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अनिकाए पोताना भाईने समजावी श्वशुरगृहे जवानी अनुमति मेळवी लीधी अने शुभ दिवसे सपरिवार प्रयाण पण कर्यु. ___ अनिका गर्भवती हती. रस्तामां ज तेने पुत्रप्रसूति थई. अनिकाए का के-पुत्रनुं नाम-मारा सासु-ससरा पाडशे परन्तु साथेनो स्वजनवर्ग तो तेने 'अर्णिकापुत्र' एवा नामथी संबोधवा लाग्यो. श्वसुरगृहे आवी पाँच्या बाद तेओ आनंदथी जीवन व्यतीत करवा लाग्या. पुत्रनुं संधीरण एवं नाम राख्यं पण लोकोमां तो ते 'अर्णिकापुत्र' ना नामथी विशेष प्रसिद्धि पाम्यो. अनुक्रमे ते यौवनवय पाम्यो. सद्गुरुसंयोगे तेनी धर्मभावना विशेष वृद्धि पामी अने छेवटे भोग विलासादिनी तृष्णाने तुच्छ मानी संधीरणे जयसिंह नामना सूरिवर्य पासे संयम स्वीकार्यु. एक चित्ते सतत शास्त्राभ्यासथी तेओ आगमज्ञानमां पारगंत थया. गुरुए तेमने आचार्यपदवी आपी. तेमनो शिष्यसमुदाय पण वृद्धि पाम्यो. पृथ्वीपीठ पर परिभ्रमण करी तेओ जनसमाज ऊपर उपकार करवा लाग्या. हवे तो तेमनी वृद्धवय पण थई गई हती तेवामां तेओ विहार करतां करतां गंगानदीना तट पर आवेल पुष्पभद्र नगरमां आवी पाँच्या अने त्यां ज रह्या.
आ नगरनो राजा पुष्पकेतु हतो अने तेनी राणीनुं नाम पुष्पवती हतुं. पुष्पवतीए पुत्र-पुत्रीना एक युगलने जन्म आप्यो. पुत्र- पुष्पचूल अने पुत्री, पुष्पचूला एवं नाम राखवामां आव्युं बने साथे क्रिडा करतां अने वयमा वृद्धि पामतां. रुपमां पण तेओ बंने एक एकथी चढियाता हता. तेओ परस्परनो एक क्षणमात्रनो वियोग सहन करी शकता नहीं. आवी स्थिति निहाळी राजाए विचार्यु के जो पुष्पचूलाने बीजे परणावीश तो तेओ बंने एक-बीजानो वियोग सहन करी शकशे नहीं माटे ते बंना परस्पर विवाह कर्यां होय तो सारुं. आ प्रमाणे विचारी राजाए बीजे दिवसे राजसभाभां पंडितोने पूछ्यु के- “अंत:पुरमां जे रत्न उत्पन्न थाय तेनो स्वामी कोण?” राजाना गूढाशयने नहीं समजनारा तेओए जवाब आप्यो के - “स्वामिन् ! समग्र देशना रत्नोना आप स्वामी छो तो अंत:पुरना रत्नो माटे तो पूछवू ज शुं?" राजाए तरत ज पोताना पुत्र-पुत्रीना विवाहनो निश्चय जाहेर को. पंडितो दिग्मूढ जेवा बनी गया. राणीए सख्त विरोध जाहेर कयों परन्तु राजवी पासे तेनुं कशुं चाल्युं नहीं. राजाना तिरस्कारथी राणीए वैराग्य पामी दीक्षा स्वीकारी. उग्र तपश्चर्या करी पुष्पवती राणीनो जीव स्वर्गने विषे देवपणे उपज्यो. काळक्रमे पुष्पकेतु राजा मरण पाम्यो एटले पुष्पचूळ राजा थयो.
पुष्पवतीनो जीव जे देव थयो हतो तेणे अवधिज्ञानद्वारा पोताना संतानोन अकृत्य जोई तेने प्रतिबोधवा माटे पुष्पचूलाने स्वप्नमां नरकनुं नीचे प्रमाणेनुं स्वरूप दर्शाव्यु, सांकडा मुखवाळा कुंभोमांथी परमाधामी देवो, जेम लोढाना तारने यंत्रमाथी खेंचे तेम, नारकजीवोने खेंचता हता, केटलाक नारकीओने कूटता हता, केटलाकनी छाती पर शिला मूकता हता, केटलाकने वज्र सरखा कांटा भोंकता हता, केटलाकना पग पकडी, धोबी जेम शिला पर वस्त्र पछाडे तेम पछाडता हता, जेम शेलडी पीले अने घाणीमां तल पीले तेम केटलाकने पीलता हता, करवतथी काष्ठने वेरे तेम
श्रीगच्छाचार–पयन्ना- १७३