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________________ अंगे गोचरीए न जाय, लोच करतां दुःख थसे एम जाणी लोच न करे, शरमथी काउसग्ग न करे, मेल उतार्या करे, पगमां मोजडी मोजादिक पहेरे, विना कारण कटिसूत्र बांधे, देश, गाम, कुल मारा छे एवी जातनो ममत्वभाव धरावे, शेष समयमां पण पाट-पाटलादिक सेवे, गृहस्थावस्थामां भोगवेल भोग याद करी प्रसन्न थाय, सोनुं-रूपुं इत्यादिक परिग्रह राखे, नख, दांत, केश, शरीरना रोम तथा शरीरने बराबर साफसुफ राखे, अंगादिक मसळे, स्नान करे, गृहस्थनी माफक भोगविलास करे, संथारा उत्तरपट्टा उपरांत शय्या पाथरे अने शय्या पण प्रमाणथी मोटी पाथरे, समग्र रात्रि सूई रहे, प्रमादी बनीने निष्कर्म बेसी रहे, वसतिमांथी निकळतां 'आवस्सही' अने प्रवेश करतां 'निसीहि' न कहे, गाममां के वसतिमां पेसतां पग प्रमार्जे नहीं, इर्यासमितिपूर्वक (धूंसरा प्रमाण आगळ दृष्टि राखीने) न चाले, पृथ्वी, अप्, तेउ, वाउ, वनस्पति अने त्रसकाय - ए छकायना जीवनी रक्षा न करे, उपधिनी थोडी पण पडिलेहण न करे, स्वाध्याय न करे, विकाले एटले रात्रिए अथवा अकाले ऊंचे स्वरे स्वाध्याय करे, कलहकंकास करे जेथी अन्यने स्वाध्यायमां अंतराय थाय, गच्छने विषे भेद पडाववामां हुशियार, बे गाउथी विशेष दूर आहार लेवानो निषेध छे छतां जाय, पहेली पोरसीमां लावेलो आहार चोथी पोरसीमां वापरे, अणदीधो आहार ले, सूर्योदय थया अगाउ आहार तेमज उपकरण वहोरे, स्थापनाघरमा रहे नहीं, पासत्यानो संग करे, निरंतर दुष्ट वृत्ति राखे, पूंजवा - प्रमार्जवामां प्रमादी रहे, उतावळो चाले, मूर्ख होय, आचार्यादिकनो पराभव करे - तेमनी आज्ञामां न रहे, पारकानी निंदा करे, कंकास-क्लेश करे, कठोर भाषा बोले, विद्या, मंत्र, तंत्र, चूर्ण तथा चिकित्सा करे, कामण- टूमण करे, चीठी दोरा करे, छोकरा भणावे, निमित्त जोई आपे, आरंभ - परिग्रह करे, कारण विना अवग्रह मांगे, दिवसे पण शयन करे, साध्वीए लावी आपेल आहार करे, ज्यां स्त्री बेटी होय त्यां बे घडी थया अगाउ बेसे, स्थंडिल, मातरुं, बडखो (कफ) तथा श्लेष्म विगेरे जयणा रहित परठवे, संथारा उपधि ऊपर बेठो बेठो क्रिया करे अगर शरीर ढांकी प्रतिक्रमण करे, मार्गमां चालतां जयणा न पाळे, पगरखां पहेरी चाले, वर्षाकाळमां पण विहार करे, एक ज गाममां वारंवार चोमासा करे, पोताना या पारका पक्ष पर ममत्व राखे, -आ बधा लक्षणो पासत्थाना छे. आवा प्रकारनी नवकल्पीनी तेमज गीतार्थनी विहारमर्यादाने जे आचार्य पालतो नथी ते केवळ वेषधारी साधु ज छे. जेम चावीने नाखी दीधेल शेलडी नि:सत्त्व बनी जाय छे तेम आवा आचार्य संयमभ्रष्ट होवाथी नि:सार छे. हजु पण तेवा आचार्यना विशेष लक्षणो दर्शावतां कहे छे के— कुलगामनगररज्जं, पयहिब जो तेसु कुणइ हु ममत्तं । सो नवरि लिंगधारी, संजमजोएण निस्सारो ॥ २४ ॥ [कुलग्रामनगरराज्यं, प्रहाय यस्तेषु करोति हु ममत्वम् । स नवरि लिङ्गधारी, संयमयोगेन निस्सारः ॥ २४ ॥] गाथार्थ-जे कुळ (घर), गाम, नगर अने राज्यसाह्यबी त्यजी दईने पुनः तेने विषे ज श्रीगच्छाचार - पयन्ना— १२४
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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