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जह दीवो दीवसयं, पइप्पए दिप्पई व सो दीवो । दीवसमा आयरिया, अप्पं च परं च दीवन्ति ॥९॥ देवा वि देवलोए निच्चं दिव्वोहिणा वियाणंता ।
आयरियमणुसरंता, आसणसयणाणि मुञ्चन्ति ।। १० ।। अर्थात् पृथ्वीनी पेठे सर्व प्रकारना मानापमान सहन करे, धर्मने विषे मेरुपर्वतनी माफक अकंपित-अडग-दृढ रहे, चंद्रनी सरखी सौम्यता-शीतळता अपें, कोईनी पण रहस्यमय वात अन्यने न करे, आलोयण देवा योग्य श्रीजैनशासनना सूत्रने विषे दर्शावेला हेतु तथा कारणो जाणे अगर तो संयम आराधननी विधि जाणे, सागरनी समान गांभीर्य गुणधारक होय, पाखंडी-मिथ्यात्वीओने दुर्धर एटले के परवादी जो वाद करवा आवे तो जीती शके नहीं, पूर्वेचर्णवेल सुकाळ अगर तो दुष्काळ विगेरेने जाणनार होय, विविध देशोने जाणे, मनुष्यना भावो जाणे, वगर विचार्यु कार्य न करे, भ्रान्ति रहित होय, श्रीतीर्थंकरपरमात्मानी आज्ञामां पोते वर्तता होय अने पारकाने वर्तवा प्रेरणा करता होय, माया-कपट रहित होय, लौकिक सर्व व्यवहार तेमज स्वशास्त्र अने परदर्शनना जाणनार होय, सामायिकादि चौदपूर्व संयुक्त द्वादशांगीश्रुतना ज्ञाता होय अने तेना अर्थने जाणनार तेमज परंपरा प्रमाणे पृच्छा करीने अर्थनो निर्णय करनार होय-आवा प्रकारना गुणवाळा आचार्यनी श्रीतार्थंकर परमात्मा पण प्रशंसा करे छे. अन्य प्रकारना आचार्य एटले शिल्पाचार्य, कर्माचार्य एम बोतेर कला शिणवाडनारा तथा लुहारीकाम, सुतारीकाम विगेरे हुनर शिखवाडवावाळा आचार्यो तो हजारो भवोमां भमे छे परंतु धर्माचार्य एटला बधा भवोमां भ्रमण न करे. श्रीजिनेश्वरप्ररूपित निग्रंथ मार्ग- प्ररूपण करनार होय एटले के एवो उपदेश आपनारा होय; जेम के-कोई हिंसादि पांच आश्रवोमां रक्त रहेशे ते संसाराब्धिमां डूबशे अने पांचे आश्रवोनो जे त्याग करशे तेमज भगवंतना फरमान मुजब तप अने धर्मानुष्ठान करशे ते मोक्षमार्गनी प्राप्ति करी शकशे. वळी अप्सराओनी मध्यमां सुखविलास भोगवतां देवो पण निग्रंथ प्रवचननी प्रशंसा करे छे के - आ वीतरागभाषित धर्मना अनुसरणथी अमे आवी दिव्य देव-ऋद्धि पाम्या. आ उपरांत आचार्यनो पोता प्रत्ये थयेल उपकार जाणी ज्यां आचार्य विचरता होय त्यां सपरिवार आवीने तेमने ते देव वांदे छे अने ए रीते शासनप्रभावना करे छे. आवा गुणशाळी आप आचार्य छो. वळी आप जळहळता दीपक समान छो. जेम एक दीपक अन्य सेकडो दीवाने प्रकाशित करे तेम आप पोते दीपो छो अने शिष्यसमुदायने दिपावो छो. अर्थात् आ लोकमां जैनधर्मने प्रकाशीने दीपो छो अने परलोकमां देवगति प्राप्त करो छो तेवी रीते अन्य भव्य प्राणिओनो उद्धार करी परलोकमां तेमने देवगतिना भाजन बनावो छो. वळी देव अवधिज्ञान युक्त होय छे अने ज्यारे तेना विचारवामां अगर तो देखवामां उपकारी आचार्य आवे त्यारे ते पोताना सिंहासनादिनो त्याग करी, सात-आठ डगला आगळ चाली वंदन करे छे तेवा समर्थ शक्तिशाळी आचार्यपदमां आप विराजो छो माटे आप जेवा स्वपरउपकारीए प्रमादवश बनवु उचित ज नथी. हे प्रभो ! जो आप प्रमादाचरण करशो तो अमारो उद्धार कोण करशे? (१-१०) आ दश गाथा चंद्रकवेध्यक प्रकीर्णकनी छे. आ प्रमाणे मधुर वाणीथी शिष्ये प्रमादी बनतां आचार्य, शिथिलपणुं दूर कराववं.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ९९