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________________ गाथार्थ-हे स्वामिन् ! हे गुरुदेव ! आपना जेवा पुरुष पणजो प्रमादवश थई जाय तो पछी आ अपार संसारसागरमां पडतां मंदभागी एवा अमने नौका सरखा आप सिवाय बीजा कोनो आधार? अर्थात् अमने भवदुःखमांथी कोण छोडावशे? विवेचन - आपणामां कहेवत प्रचलित छे के -“जेनो नायक आंधळो तेनुं कटक (सैन्य) कूवामां" आ उक्ति बराबर प्रमादी गुरुने लागु पडे छे. जो उत्तम पुरुष-गच्छनायक पुरुष प्रमादवश थई जाय त्यारे तेमनो बोध कशुं पण फळ निपजावी शके नहीं अने तेमना आचारविचार जोई केटलाक शिथिल बनतां शिष्यो पण विशेष पतित थाय, माटे सारा शिष्यनी ए फरज छे के तेणे गुरुने प्रतिबोधवा-समजावी पुन: शुद्ध मार्गमां स्थापित करवा. समजाववाना प्रसंगे शिष्य कहे के–“हे गुरुदेव ! तमो तो आ चार गतिरूप अगाध भवसागरमांथी अमारो उद्धार करवामां जहाज समान छो. जहाज ज समुद्रमा अवलंबनरूप छे. जो जहाज तूटे अगर डूबे तो तेना आश्रये रहेला पथिको पण पीडा पामे अगर तो डूबी जाय एवी रीते जो आप प्रमादवश बनशो तो पछी अमारे कोनुं शरण स्वीकारवू? " आ प्रमाणे विविध मिष्ट वचनथी गुरुने प्रतिबोधवा प्रयत्न करवो परंतु कठिन के कडवू वचन न कहेवू. स्तुति के प्रार्थनापूर्वक कहेवामां आवे तो तेनी गुरु प्रत्ये शीघ्र सारी असर थाय छे. तेमनी स्तुति केवी रीते करवी अगर तो गुरुना केवी रीते गुण दर्शाववा ते संबंधी वर्णन करतां कहे छे के - पुढवीविव सव्वसहं, मेरुब्व अकंपिरं ठियं धम्मे । चंदुव्व सोमलेसं, तं आयरियं पसंसन्ति ॥ १ ॥ अप्परिसावं आलो - यणारिहं हेउकारणविहिन्नुम् ।। गंभीरं दुद्धरिसं, तं आयरियं पसंसंति ॥ २ ॥ कालन्नु देसन्न, भावन्नु अतुरिअं असंभंतम् ।। अणुवत्तयं अमायं, तं आयरियं पसंसंति ॥ ३ ॥ लोइयसामइएसुं, सत्येसुं जस्स नत्थि वक्खेवो । ससमयपरसमयम्मि अ, तं आयरियं पसंसंति ॥ ४ ॥ बारसहि वि अंगेहिं सामाइयमाइपुव्वनिबद्धे । लद्धद्धं गहियटुं, तं आयरियं पसंसंति ॥ ५ ।। आयरियसहस्साइं, लहइ अजीवो भवेहि बहुएहिं । कम्मेसु य सिप्पेसु य, धम्मायरणेसु नो कहवि ॥ ६ ॥ जे पुण जिणोवइवे, निग्गंथे पवयणंमि आयरिया । संसारमुक्खमग्गस्स, देसगा ते हु आयरिया ॥७ ॥ देवा वि देवलोए, निग्गंथं पवयणं अणुसरंता । अच्छरगणमझगया, आयरिए वंदया इंति ॥ ८ ॥ श्रीगच्छाचार–पयन्ना- ९८
SR No.022586
Book TitleGacchayar Ppayanna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri, Gulabvijay
PublisherAmichand Taraji Dani
Publication Year1991
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size31 MB
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