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भूमिका
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अगर न आगम जगत् में, क्या होता कलिकाल। मुनि 'सुशील' अनाथ ज्यों, अरे हाल बेहाल।।९५ ।। अगर न आगम जगत् में, मिलता कभी न पंथ। अमित पुण्य से मिल रहा, जिनशासन निर्ग्रन्थ।।९६ ।। जैनागम की नाव से, कर ले सागर पार। केवट हैं गुरुवर सदा, डूबे नहिं मँझधार ।।९७ ।। जैनागम है कल्पतरु, बैठो इसकी छाँह । इसे छोड़कर चाहता, कीकर तले पनाह।।९८।। आगम से अघ वन दहन, धर्म विटप लहराय। शिवफल प्रगटे शीघ्र ही, सूरि 'सुशील' उपाय।।९९ ।। सिद्धि सदन आगम अहो! चेतन करो प्रवेश। पाँच भेद स्वाध्याय के, करो विनय परिवेश।।१०।। जैनागम है परसमणि, पाठक हैं धनवान। साधन कर चारित्र का, होगा तू भगवान ।।१०१ । । जैनागम परताप से, सर्वकाल संसार। तिरते जीव अनन्त ही, लो श्रद्धा स्वीकार । ।१०२।। नरक निवारक सूत्र जिन, पाप-पंक धुल जाय। कर्म दहावन वचन शुभ, पढ़ो सूत्र मन लाय।।१०३ ।।
जैनागम भूषण महा आगम जाना श्रमण ही, जिनशासन सिरमौर। करते धर्म प्रभावना, महिमण्डल चहुँ ओर ।।१०४।। आगम जान परोक्ष पर, प्रत्यक्ष गुरुमुख होय। अतः विनय से लीजिए, भव अन्तर दुख खोय।।१०५ । । आगम आज्ञा मान्य हो, शरणागति स्वीकार । शिव सुख वैभव प्राप्त हो, दुर्लभ कब संसार।।१०६।।