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भूमिका
ज्ञान यज्ञ स्वाध्याय नित, यदि बाधा आ जाय । दूर करें श्रुत देव सब, बाधा देव भगाय । ।४८ । । नानाविध अनुपम अहा ! आगम अर्थ अपार । मुनि 'सुशील' साक्षात् है, शिव-साधन का द्वार । । ४९ । । छन्द मनोहरण
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कहाँ अमी अरु विष कहाँ, तम कहाँ कहाँ रश्मि । कहाँ आक कहाँ आम, अहि पुष्पहार जो । । ५० ।।
कहाँ तारे कहाँ अर्क, कहाँ नृप कहाँ रंक | कहाँ आग कहाँ बाग, ग्रीष्म तुषार जो । । ५१ ।।
कहाँ शूल कहाँ फूल, कहाँ कलधौत कहाँ लोह। कहाँ मित्र कहाँ अरि, दया अत्याचार जो । । १५२ ।। कहाँ जैन वैन अहो ! मिथ्यात्व वचन कहाँ । समान कथन करे, मूढ़ मायाचार जो । । ५३ ।। प्रवचन - परीक्षा
श्री जैनागम के सिवा, अन्य शास्त्र हैं शस्त्र । या कि कलश है विष - भरा, या काँटों का छत्र ।।५४।। जैनागम पढ़ते न यदि, तो पढ़ना बेकार । आगम में ही मन रमे, मुनि जीवन का सार । । ५५ ।। आगम से अज्ञान का, कर छेदन विच्छेद | आगम के अभ्यास से, होय ग्रन्थि का भेद । । ५६ ।। लौकिक लोकोत्तर लखो, श्रुत के दो-दो भेद । सूत्र परीक्षा कीजिए, पा जाये निर्वेद । । ५७ ।।
श्री सद्गुरुसान्निध्य में, समझो शास्त्र रहस्य । मुनि 'सुशील' कहता अरे, तभी सफल पांडित्य । । ५८ । ।
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