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श्री आचारांगसूत्रम्
पद्यमय भावानुवाद
गरमी लें आतापना, उकडू आसन तात । सम्मुख सूरज लू चलें, कभी नहीं अकुलात।।१।। स्वादहीन आहार लें, रूखा-सूखा उड़द ।
या सत्तू लें अल्प ही, वह भी लेयँ न जल्द।।२।। मूलसूत्रम्
एयाणि तिण्णि पडिसेवे अट्ठ मासे अ जावए भगवं। अपिइत्थ एगया भगवं अद्धमासं अदुवा मासं पि।। अवि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदुवा अपिवित्ता।
रायोवरायं अपडिण्णे अण्णगिलायमेगया भुंजे।। पद्यमय भावानुवाद
इस क्रम के आहार से, बीते महिने आठ। पिया न पानी वीर ने, तप का अद्भुत ठाठ।।१।। एक पक्ष या मास इक, वे नहिं पीते नीर। घोर तपस्वी वीरवर, तन-मन से बे पीर ।।२।। दो महिने छह मास तक, नहिं पीते वे नीर।
रात-रातभर जागते, त्रिशला-सुत प्रभु वीर।।३।। मूलसूत्रम्
छटेणं एगया भुजे अदुवा अट्ठमण दसमेणं।
दुवालसमेण एगया भुंजे पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे।। पद्यमय भावानुवाद
तप उनका क्रमशः चला, छट्ठ-अट्ठ अरु चोल। पंचोले बारह दिवस, चोले दस दिन बोल।।१।। नहिं संकल्प अहार का, थे समाधि में लीन । तपमय जीवन वीर का, तप-समाधि ही दीन ।।२।।