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इंगितमरण शरीर का करते मुनिवर त्याग । मुनि 'सुशील' वे मुक्तिपद, पा लेते सौभाग । । ५ । ।
मूलसूत्रम् -
आठवाँ उद्देशक
समत्व बोध
मूलसूत्रम् -
जीवियं णाभिकंखेज्जा, मरणं णो वि पत्थए । दुहवो ओडविण सज्जिज्जा, जीविए मरणे तहा ।। पद्यमय भावानुवाद
जीवन की इच्छा नहीं, नहीं मृत्यु का भाव । दोनों में आसक्ति बिन, रखते मुनि समभाव ।।
• पाप निरोध
श्री आचारांगसूत्रम्
जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए । तओ उक्कसे अप्पाणं, फासे तत्थ हियासए । ।
पद्यमय भावानुवाद
मूलसूत्रम् -
वर्ण्य क्रिया या कार्य में, अगर पाप हो जाय । वह धन्धा मत कीजिए, जैनागम फरमाय ।। अरे ! अरे ! जिस कार्य से, हो अघ वज्र समान । कभी नहीं वह कीजिए, तुम साधक गुणवान ।।
धर्म प्रभावक
बुद्धा धम्मस्स पारगा ।