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________________ आठवाँ अध्ययन : विमोक्ष *१२५ * -. -. -. -. -. -. रसना-रस के कारणे, करे न वह आहार । केवल रक्षा देह की, करे अशन अणगार।।२।। दायें से बायें अरे, ग्रास न हो संचार। एक ओर से चाब कर, देते गले उतार।।३।। एक गाल से दूसरे, गाल न हो संचार। उदासीन हो स्वाद से, लेते गले उतार।।४।। कर्मों को हलका करें, स्वादविजेता सन्त। सहज रूप तप प्राप्त हो, फरमाते भगवन्त ।।५।। सम्यक् रूप विचार तू, साधक सर्व प्रकार। समता का सेवन करे, होने हित भव पार।।६।। • मरणविधि. मूलसूत्रम्जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवइ से 'गिलामि च' खलु अहं इमंसि समए इमं सरीरगं अणुपुव्वेण परिवहित्तए, से आणुपुव्वेणं आहारं संवट्टेज्जा, आणुपुव्वेणं आहारं संवदेत्ता, कसाए पयणुए किच्चा समाहियच्चे फलगावयट्टी उट्ठाय भिक्खू अभिण्वुिडच्चे। पद्यमय भावानुवाद साधक मन संकल्प यह, नश्वर देह ग्लान । सहज क्रिया असमर्थ है, नहीं काय सुखमान।।१।। जो मुनिवर क्रमशः करें, नित्य अशन का त्याग । पतला करें कषाय अघ, बलयुत करें विराग।।२।। मुनिवर नियमित से करें, काया का व्यवहार। तन कषाय हो फलक सम, दोनों क्षीण निहार।।३।। साधक मरण समाधि हित, समता ले अपनाय। देह दुक्ख संताप हित, सदा रहित हो जाय।।४।।
SR No.022583
Book TitleAcharang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri, Jinottamsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2000
Total Pages194
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size41 MB
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