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तहेवो तहोसहिओ पकाओ, नीलिआओ छवीह आ लाइमा भन्जिमाउत्ति, पिएसज्ज ति गो वए॥ रूडा बहु संभूआ, गिरा ओसन वि ।।
गब्मिआओ पसूआओ, ससाराउल आलवे॥३५॥ चावल, गेहूँ आदि औषधियों तथा बाल, चना आदि पक गये हैं, काटने योग्य है, भूनने योग्य है, पोंक करके खाने योग्य है। ऐसा साधु न कहे। __प्रयोजनक्श कहना पड़े तो ये गेहूं आदि औषधियों अंकुरित है, निष्पन्न प्रायः है, परिपूर्ण रूप से तैयार है, ऊपर उठ गई हैं, उपघात से निकली है, भट्ठों से रहित है, भट्ठों से सहित है, चावल आदि तैयार हो गये है इस प्रकार निर्दोष भाषा का प्रयोग करें। ३४, ३५। "संखडी आदि के विषय में भाषा का प्रयोग" .
तहेब संखाई नच्या, किन्च कज्जे ति नो वए।
तेणगं वा वि वझिति, सतिति सि अ आवगा॥३६॥ ___. संखार्ड संखाई बुआ, पणिआई ति तेणगं।
. बहुसमाणि तित्वागि, आवणार्ण विआगरे॥३॥
संखडी जीमनवार, मृत्युभोज, करने लायक है, मोर वध करने लायक है, नदी सुखपूर्वक उतरने योग्य है। ऐसा साधु न कहे। ३६।
प्रयोजनक्श कहना पड़े तो संखडी को संखडी कहे, चोर को धन हेतु जीवन की बाजी लगानेवाला, नदी का मार्ग प्रायः सम है। ऐसी भाषा साधु बोले।३७। "नी के विषय में भाषा का प्रयोग
तहा नहओ पुजाओ, कापतिज्य ति नो वए। . नावाहि तारिमाओ ति, पाणिपिज्ज ति नो वए॥३८॥ पावाडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा।
बहुविवडोदगा आदि, एवं भासिष्ण पनवं॥३९॥ ये नदियों भरी हुई हैं, हाथों से तैर सके ऐसी हैं, नौका से दूसरे किनारे जा सके ऐसी हैं, किनारे पर रह कर प्राणी पानी पी सके ऐसी हैं ऐसा साधु न कहे।३८।
प्रयोजन वश कहना पड़े तो प्राय: नदी भरी हुई हैं। प्रायः अगाध है। बहुसलिला, अधिक जलयुक्त है। दूसरी नदियों के द्वारा जल का के बढ़ रहा है। नदी के किनारे आद्र हो जाय ऐसी अतीव विस्तार वाली है बिस्ती जलयुक्त है। बुद्धिमान् श्रमण इस प्रकार बोलें। ३९। "विविध विषयों में पापा का प्रयोग"
तहेब साव जोन, परस्सहाए निहि। करिमाणं शिवानन्या, सावज नालवे मुणी॥०॥
श्री दशवकालिक सूत्रम् /८७
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