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संसटेण खरंटित असणीयं निर्दोष ॥३६॥ छंदं अभिप्राय पडिलेहो विचार करे॥३७॥ कालमासिणी पूर्ण मासवाली निसन्ना बैठी हुई पुणट्ठओ पुन: उठे॥४०॥ थणगं स्तन पिज्जमाणी पान करानेवाली निक्खिवित्तु रखकर रोअंतो रोता हुआ आहरे लेकर आये॥४३॥ उव्वण्णत्थं तैयार किया हुआ॥४४॥ निसाओ दलने के पत्थर से पीढअण काष्ठपीठ से लोढेण छोटा पत्थर विलेवेण मिट्टी का लेप सिलेसेण लाक्षादि पदार्थ से उभिदिउ लेप आदि दरकर दावओ दाता॥४५-४६॥ दाणट्ठा दानार्थ ॥४७॥ पुण्णट्ठा पुण्यार्थ ॥४९॥ वणिमट्ठा भिक्षाचर हेतु॥५१॥ समणट्ठा साधु के लिए॥५३॥ उस्सक्किआ चूल्हे में काष्ठ डालकर ओसक्किया काष्ठ निकालकर उज्जलिआ एकबार काष्ठ डालकर पज्जालिआ बार-बार काष्ठ डालकर निव्वाविआ बुझाकर उस्सिंचिआ उभरा आने के भय से थोड़ा अन्न निकालकर निस्सिंचिआ पानी का छिटकाव कर उव्वत्तिआ दूसरे बर्तन में डालकर ओयारिया नीचे उतार कर॥६३-६४॥ हुज्ज काष्ठ संकमट्ठाओ चलने हेतु चलाचलं चलविचल॥६५॥ निस्सेणिं निसरणी पीढं बाजोट उस्सवित्ताणं ऊँचे करके मंचं पलंग कीलं खीला पासायं प्रासाद पर दुरूहमाणी दुःखपूर्वक चढती हुई पवडिज्जा गिर जाय लुसओ टुट जाय जगे प्राणी अआरिसे ऐसा॥६७-६९॥ पलंबं ताड़ के फल सन्निरे पत्र शाक तुंबागं तुंबा सिंगबेरं अद्रक॥७॥ सत्तुचुण्णाई सत्तु का चूर्ण कोल चुण्णाई बोर का चूर्ण आवणे दुकान फाणिओ पतला गुड़ पूयं पुडले विक्कायमाणं बेचा जाने वाला पसदं अधिक दिन का रअण सचित्त रज से परिफासिअं खरंटित॥७१-७२॥ बहुअट्ठिअं अधिक कठिन बीज वाला पुग्गलं सीताफल अणिमिसं अनानास बहुकंटयं कांटे युक्त अच्छियं अस्तिक वृक्ष का फल तिंदुअं तिंदुक वृक्ष का फल बिल्लं बिल्व सिंबलिं शीमला फल सिया होवे उज्जियधम्मिये त्याज्य॥७३-७४॥ वारधोअणं गुड़ के घड़े को धोया हुआ पानी अदुवा अथवा,या संसेइमं आटे का धोया हुआ पानी अहुणाधोअं तुरंत का धोया हुआ पानी, मिश्रण॥७५ ॥ चिराधोयं दीर्घ काल का धोया हुआ पानी मइओ सूत्रानुसारी बुद्धि से भवे होवे॥७६॥ अह अब भविज्जा होवे आसाइत्ताण चखकर । शेअए निश्चय करे॥७७ ॥ आसायणट्ठा चखने के लिए दलाहि दो अच्चंबिलं अतिखट्टा पूई खराब नालं समर्थ नहीं है विणित्तो निवारण हेतु॥७८ ॥ अकामेण बिना इच्छा से विमणेणं वैमनस्कता से पडिच्छियं ग्रहण किया अप्पणा स्वयं पिबे पीओ दावजे दे दिरावे॥८०॥ एगंतं अकांत में अवक्कमित्ता जाकर परिठप्प परठकर॥८१॥ कुट्टगं शून्य घर, मठ, भित्तिमूलं भीत के पास अणुनवित्तु गृहस्थ की आज्ञा लेकर पडिच्छन्नंमि तृणादि से आच्छादित संवुडे उपयोग सहित संपमज्जिता अच्छी प्रकार पूंजकर॥८२-८३॥ अट्ठिओ कठिन बीज सक्कर कंकर उक्खिवित्तु उठाकर निक्खिवे दूर फेंके आसअण मुख से न छडुओ न फेंके गहेऊण लेकर अवक्कमे जावे॥८४-८५॥ सिज्जमागम्म उपाश्रय में आकर सपिंडपायं शुद्ध भिक्षा लेकर उंडुअं भोजन करने के स्थल को॥८७॥ आयाय बोलकर॥८८॥ आभोइत्ता जानकर नीसेसं सभी॥८९॥ वीसमेज्ज विश्रांति ले॥९३॥ हियमद्वं हितार्थ लाभमट्ठिओ लाभार्थी अणुग्गहं प्रसाद, उपकार तारिओ तारा हुआ
॥९४॥ सद्धिं साथ में॥९५॥ आलोए भायणे प्रकाशवाले पात्र में॥९६॥ अन्नत्थ पउत्तं देह निर्वाहार्थ॥९७॥ सूइअं शाकादि सहित उल्लं हरा सुक्कं शुष्क मंथु बोर चूर्ण कुम्मास उड़द के बाकले
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ४४