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तृतीय
सम्बन्ध- - दूसरे अध्ययन में प्रतिपाद्य विषय सयंम में धैर्य रखना है, धैर्य सदाचार में ही रखना चाहिये, अनाचारों में नहीं। इस सम्बन्ध से आए हुए तीसरे अध्ययन में बावन अनाचारों का सामान्य स्वरूप और उनको छोड़ने का उपदेश दिखाया जाता है—
संजमे सुट्ठिअप्पाणं, विप्पमुक्काणं तेसिमेयमणाइणं, निग्गंथाणं
ताइणं ।
महेसिणं ॥ १ ॥
शब्दार्थ –— संजमे सतरह प्रकार के संयम में सुट्ठिअप्पाणं अच्छी तरह आत्मा को स्थिर रखनेवाले विप्पमुक्काणं बाह्याभ्यन्तर परिग्रह से रहित ताइणं स्व पर रक्षक निम्गंथाणं बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थी शून्य सं न मसिणं साधुओं को एवं आगे कहे जानेवाले बावन अनाचार अणाइणं आचरण करने योग्य नहीं है।
से
—संयम धर्म का निर्दोष पालन करनेवाले, अपनी और दूसरों की आत्मा को तारनेवाले, द्रव्य-भाव रूप गांठ और बाह्याभ्यन्तर परिग्रह से रहित महर्षिय साधुओं को आगे कहे जानेवाले बावन अनाचार छोड़ देने योग्य हैं।
" बावन अनाचार "
नयागमभिहाि
उद्देसियं कीयगडं, राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य
य।
बीयणे ॥ २ ॥
शब्दार्थ — उद्देसियं साधुओं के उद्देश्य से बनाये गये आहार आदि लेना १, कीयगडं साधुओं के लिए खरीद कर लाये गये आहार आदि लेना २, नियागं निमंत्रण मिले हुए घरों से आहार आदि ना ३, अभिहडाणि साधु को देने के लिए गृहस्थों ने स्व पर गाँव से मँगवाए हुए आहार आदि लेना ४, राइभत्ते दिवागृहित आदि रात्रिभोजन करना ५, सिणाणे य देशस्नान या सर्वस्नान करना ६, गंधमल्ले चूआ, चन्दन, इत्र आदि सुगंधित पदार्थ लगाना ७, पुष्पों की माला पहनना ८, य और बीयणे गर्मी हटाने के वास्ते ताड़, खजूर, पत्र, कागज, वस्त्र आदि के बने हुए पंखे रखना ९.
संनिही गिहिमत्ते य, रायपिंडे किमिच्छए । संवाहणं दंतपहोयणा य, संपुच्छणं देहपलोयणा य ॥ ३ ॥
शब्दार्थ –संनिही घी, गुड़, शक्कर, आदि को संग्रह करके रखना १०, गिहिमत्ते य भोजून आदि में गृहस्थों के भोजन काम में लेना १९, रायपिंडे राजा के दिये हुए आहार आदि लेना १२, किमिच्छए क्या चाहते हो ऐसा कहनेवाले के घर से या दानशाला आदि से आहार आदि लेना १३, संवाहणं हाड़, मांस, चाम, रोम आदि को सुख पहुंचाने वाले तेल आदि लगाना १४, दंतपहोयणा
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / १३