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________________ देकर घर में आने से रोकता है। घर से निकाल देता है।४। तहेव अविणीअप्पा, उववज्झा हया गया। दीसन्ति दुहमेहन्ता,... - आभिओग-मुवट्ठिया॥५॥ राजा, सेनापति, प्रधान आदि की सवारी के काम में आने वाले हाथी घोडे जो-जो अविनीत होते है। अड़ीयल होते है। वे भार वहन करने के द्वारा क्लेश रुप दुःख को प्राप्त करते है।५। (उववज्झा:औपवाह्य सवारी के काम में आना) "सुविनीत को सुफल की प्राप्ति" तहेव सुविणीअप्या, उववज्झा हया गया। दीसन्ति सुहमेहन्ता, इहिं पत्ता महायसा॥६॥ ___ राजा आदि की सवारी के काम में आनेवाले जो हाथी, घोडे सुविनीत होते हैं। वे आभूषण, रहने का स्थान, उत्तम आहारादि को प्राप्त कर स्वयं के सद्गुणों से यश, प्रख्याति को प्राप्त कर सुखों का अनुभव करते हैं।६। तिर्यंच विनय गुण से सुखानुभव करता है तो मुनि महान स्थान को पाया हुआ है वह विनय गुण के द्वारा महान सुख मोक्ष सुख को प्राप्त करें इसमें क्या कहना? "अविनीत की दुर्दशा" तहेव अविणीअप्पा, लोगंसि नर-नारिओ। दीसन्ति दुहमेहन्ता, छाया विगलिन्दिया॥७॥ पशुओं के समान जो नर-नारी अविनीत हैं, वे जगत में अनेक प्रकार के दुःखों को भोगते हुए, चाबुक आदि के प्रहार से व्रण, घाव युक्त देह वाले एवं परस्त्री आदि दोषों के फलरुप में नाक आदि इंद्रियों से विकल देखने में आते हैं। दण्ड-सत्थ-परिजुण्णा, असन्म-वयणेहि य। कलुणा विवन्न-छन्दा, खुप्पिवासा-परिगया॥८॥ अविनीत नर-नारी दंड, शस्त्र, महाकठोर वचनों से दुर्बल हो जाने से करुणा पात्र, दीन, पराधीन, और क्षुधा प्यास से पीड़ित बनकर, अनेक प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं। अविनय के फलरुप में इस भव में अनेक प्रकार के दुःख भोगते हैं एवं उन्हें परभव में नरक निगोदादि के महा दुःख भोगने पड़ते हैं।८। "सुविनीतता का फल" तहेव सुविणीअप्पा, लोगंसि नर-नारिओ। दीसन्ति सुहमेहंता, इहिं पत्ता महायसा॥९॥ लोक में सुविनीत नर-नारी ऋद्धि महायश को प्राप्त कर महान सुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं।९। श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ११०
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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