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१६२ निमजिलं मोहमहसवम्मि । सुहेसिपो दुक्खविणोयणट्ठा
तप्पच्चयं उजामए य सगी विरङमाणस्त य इन्दियत्था
सद्दाइया तावइयप्पगारा । न तस्स सवे वि मणुनयं वा निवतयन्ती अमणुन्नयं वा एवं ससंकप्पविकप्पणासु संजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्थे असंकप्पयो तयो से पहीयए कामगुणेसु तण्हा स वीयरागो कयसबकिच्चो
खवेइ नाणावरणं खणेणं । तहेव जं दसणमावरेइ
जं चन्तरायं पकरेइ कम्म सवं तओ जाणइ पासए य
अमोहणे होइ निरन्तराए । अणासवे काणसमाहिजुत्ते
थाउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे सो तस्स सव्वस्स हस्त मुक्को
जं बाहई सययं जन्तुमेयं । दीहामयं विप्पमुक्को पसत्थो
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