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उत्तरायणं. ३२,
सत्तोवसत्तो न उवे तुट्ठि । तुट्ठदोसे दुही परस्स लोनावले ययई अदत्तं
तरहाजिभूयस्स ३ त्तहारिणो जावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से
मोस्स पहा य पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो
भावे तितो हिओ अणिस्सो
भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं
कत्तो सुहं होऊ कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं
निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं एमेव भावम्मि गओ पओसं
उबेइ दुक्खोह परंपराओ । पट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं
जं से पुणो होइ पुहं विवागे जावे विरत मणुओ विसोगो एए दुक्खोहपरंपरेण | न लिप्पए' जवमज्जे वि सन्तो १ Ch. (चा.) लिप्पई.
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