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________________ १६० उत्तरायणं. ३२, सत्तोवसत्तो न उवे तुट्ठि । तुट्ठदोसे दुही परस्स लोनावले ययई अदत्तं तरहाजिभूयस्स ३ त्तहारिणो जावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वइ लोभदोसा तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से मोस्स पहा य पुरत्थओ य पओगकाले यदुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो भावे तितो हिओ अणिस्सो भावाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होऊ कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स करण दुक्खं एमेव भावम्मि गओ पओसं उबेइ दुक्खोह परंपराओ । पट्ठचित्तोय चिणाइ कम्मं जं से पुणो होइ पुहं विवागे जावे विरत मणुओ विसोगो एए दुक्खोहपरंपरेण | न लिप्पए' जवमज्जे वि सन्तो १ Ch. (चा.) लिप्पई. ॥ ए४ ॥ ॥ ९५ ॥ ॥ ९६ ॥ ॥ ९७ ॥ ॥ ९८ ॥
SR No.022575
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJivraj Ghelabhai Doshi
PublisherJivraj Ghelabhai Doshi
Publication Year1925
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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