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उचर ३२.
कालियं पावर से विषासं । रागाजरे ओसहगन्धगिद्धे सप्पे बिलायो विव निक्खमन्ते
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जे यावि दोसं समुवेइ तिद्वं तंसिक्ख से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसे सए जन्तु न किंचि गन्धं अवरुज्जई से
एगन्तरते रुइरंसि गन्धे तालिसे से कुई पश्चसं । क्खस्स संपीलमुवे बाले न लिई ते मुणी विरागो
गन्धाणुगासागर य जीवे .. चराचरे हिंसइ गरूं । चितेहि ते परतावे पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिट्टे
बाले
गन्धाणुवाए परिग्गदेण उपायणे रक्खणसन्नियोगे । चए वियोगे य कदं सुहं से संजोगकाले य अतित्तलाने
गन्धे व्यतित्ते य परिग्गहमि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । तुट्ठदोसे दुही परस्स
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