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पपावहार
१५१ सहे अतितो दुहियो अणिस्सो ॥१४॥ सदाणुरत्तस्स नरस्स एवं
कत्तो सुहं होङा कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसाक्खं निवत्तई जस्स कएण दुक्खं
॥४५॥ एमेव सदम्मि गयो पओसं
उवेइ मुक्खोहपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म
जं से पुणो हो। दुई विवागे सद्दे विरत्तो मणुयो विसोगो
एएण दुक्खोहपरंपरेण । . . ... न लिप्पए नवमज्के वि सन्तो
जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥४७॥ घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति
तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेडं अमणुन्नमाहु
समो य जो तेसु स वीयरागो ॥४८॥ गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति .....
घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेडं समणुनमाहु ... दोसस्स हेडं अमणुन्नमाहु
......॥४९॥ गन्धेसु जो गिद्धिमुवे तिचं