SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २१) तुब्भे सणाहा य सबंधवा य, जं भे ठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ॥ ५५ ॥ तं सि नाही अणाहाण', सव्वभूयाण संजया । . खामे मि ते महाभाग, इच्छामि अणुसासि ॥ ५६ ॥ पुच्छिऊण मए तुभ, झाणविग्घाआ जो कओ ।। निमंतिया य भोगेहि, तं सव्वं मरिसेहि मे ।। ५७ ॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणगारसीह परमाइ भत्तीए । सआरोहा सपरियणा सबंधवा, धम्माणुरत्तो विमलेण __ चेयसा ॥ ५८ ॥ ऊससियरामकूवा, काऊण य पयाहिणं । अभिवंदिऊण सिरसा, अइयाआ नराहिवा ॥ ५९ ॥ इयरो वि गुणसमिद्धा तिगुत्तिगुत्तो तिदडविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमाहो ॥ ६० ॥ त्ति बेमि ॥ महानियंठिन्जं णाम वीसइमं अज्झयणं समत्तं ॥ २० ।। ॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइमं अज्झयणं । चपाए पालिए नाम; सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणी ॥१॥ निग्गंये पावयणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरते, पिहुंढ नगरमागए ॥२॥
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy