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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २१) तुब्भे सणाहा य सबंधवा य, जं भे ठिया मग्गे
जिणुत्तमाणं ॥ ५५ ॥ तं सि नाही अणाहाण', सव्वभूयाण संजया । . खामे मि ते महाभाग, इच्छामि अणुसासि ॥ ५६ ॥ पुच्छिऊण मए तुभ, झाणविग्घाआ जो कओ ।। निमंतिया य भोगेहि, तं सव्वं मरिसेहि मे ।। ५७ ॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणगारसीह परमाइ भत्तीए । सआरोहा सपरियणा सबंधवा, धम्माणुरत्तो विमलेण
__ चेयसा ॥ ५८ ॥ ऊससियरामकूवा, काऊण य पयाहिणं । अभिवंदिऊण सिरसा, अइयाआ नराहिवा ॥ ५९ ॥ इयरो वि गुणसमिद्धा तिगुत्तिगुत्तो तिदडविरओ य । विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वसुहं विगयमाहो ॥ ६० ॥ त्ति बेमि ॥ महानियंठिन्जं णाम वीसइमं अज्झयणं समत्तं ॥ २० ।।
॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइमं अज्झयणं । चपाए पालिए नाम; सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणी ॥१॥ निग्गंये पावयणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरते, पिहुंढ नगरमागए ॥२॥