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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं २.) ७९ भइणीओ मे महाराय, सगा जेटुकणिदगा । न य दुक्खा विमोयति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २७ ।। भारिया मे महाराय, अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहि, उर मे परिसिंचई ॥ २८ ॥ अन्नं पाणं च पहाणं च, गंधमल्लविलेवण ।। मए नायमनाय वा, सा बाला नेव भुजई ।। २९ ।। खणं पि मे महाराय, पासाओ मे न फिट्टई । न य दुक्खा विमाएइ. एसा मज्झ अणाहया ॥ ३० ॥ तओ हं एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणे पुणेा । वेयणा अणुभविउ जे, संसारम्मि अणतए ॥ ३१ ॥ सईच जइ मुच्चेजा, वेयणा विउला इओ । खतो तो निरार भो, पव्वए अणगारियं ॥ ३२ ॥ एवं च चिंतइत्ताणं, पसुत्ता मि नराहिवा । परियतंतीए राईए, वेयणा मे खयं गया ।। ३३ ।। तओ कल्ले पभायम्मि, आपुच्छित्ताण ब धवे । खंतो द तो निगरा, पन्चइआऽणगारियं ॥ ३४ ॥ तो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सव्वे सिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ॥ ३५ ॥ अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेण् , अप्पा मे नंदण वण ॥ ३६ ।। अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुक्खाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियसुपढिओ ॥ ३७ ॥