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उत्तराध्ययन सूत्रम् (अध्ययनं १४)
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गिद्धो मे उनच्चाण ं, का सार उरगो सुवणपासे व्व, संकमाणा तणु चरे ॥४७॥ नागो व् बघणं छित्ता, अप्पणो वसहि वए । एयं पच्छ महाराय उसुवारि ति मे सुयं ॥ ४८ ॥ चइत्ता विउल रज्ज', कामभेोगे यदुच्चए | निब्बिसया निरामिसा निन्नेहा निष्परिगहा ||४९ | सम्म धम्म वियाणित्ता, चच्चा कामगुणे वरे । तत्र' पगिज्झहक्खाय', घोर घोरपरक्कमा ॥५०॥ एवं ते कमसेो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभउब्बिग्गा, दुक्खस्स तगवेसिणों ॥ ५१|| सासणे विगयमाहाण, पुव्विं भावणभाविया | अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्स तमुवागया || ५२|| राया सह देवी, माहणा य पुरोहिओं ।
माहणी दरगा चैव सव्वे ते परिनिव्वुडा || ५३ ॥
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त्ति बेमि ।। इति उसुयारिज्ज' नाम चाद्दहम अज्झयण' समत्त
।।१४।।
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|| अह सभिक्खू पंचद अज्झयण ॥
मो' चरिस्सामि समिच्च धम्म, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथव जहिज्ज अकामकामें, अन्नायएसी परिव्वएस भिक्खू
॥१॥