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________________ ३५ .. उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ११) अप्पं च अहिक्खिवइ, पबंधं च न कुव्वई । मेत्तिज्जमाणो भयई, सुयं लदु न मजई ॥ ११ ॥ . न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥ १२ ।। कलहडमरवज्जिए, बुद्धे अभिजाइगे । हिरिमं पडिसलीणे, सुविणीए त्ति वुचई ॥ १३ ॥ : वसे गुरुकुले निच, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियवाई, से सिक्खं लडुमरिहई ॥ १४ ॥ जहा संखम्मि पयं, निहिय दुहओ वि विरायइ । एव बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥१५॥ जहा से कंबोयाण, आइण्णे कथए सिया । . आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १६ ।। जहाइण्णसमारूढे, सूरे दृढपरक्कमे । .. उभओ नंदिघोसेणं, एवं हवइ बहुस्सुए ।। १७ ॥ जहा करेणुपरिकिण्णे, कुंजरे सद्विहायणे । : बलवंते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १८ ॥ जहा से तिक्खसिंगे, जायखधे विरायई । वसहे जूहाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १९ ॥ जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । : . . . सीहे मियाण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २० ॥... जहा से वासुदेवे, संखचक्कगदाधरे ।... अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए, ॥ २१ ॥.
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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