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उत्तराध्ययनसूजम् (अध्ययन ११) जहा से चाउरते, चकवट्टी महिए । चोदसरयणाहिवई, एव हवइ बहुस्सुए ॥ २२ ।। जहा से सहस्सक्खे, वजपाणी पुरंदरे । सक्के देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २३ ॥ जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिटुंते दिवायरे । जलंते इव सेएण, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २४ ॥ जहा से उडुवई चंदे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २५ ॥ जहा से सामाइयाणं, कोडागारे सुरक्खिए । नाणाधनपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २६ ॥ जहा सा दुमाण पवरा, जम्बू नाम सुदंसणा । आणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ २७ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवंतपक्हा, एवं हवइ बहुस्सुए ॥२८॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरि । नाणोसहिपज्जलिए, एवं हवइ बहुस्सुए. ॥ २९ ॥ जहा से सयंभूरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥३०॥ समुद्गंभीरसमा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुण्णाविउलस्स नाइणो, खवित्त कम्मं गइमुत्तमं गया ॥३१॥ तम्हा सुयमहिडिजा, उत्तमट्ठगवेसए । जेणप्पाणं परं चैव, सिद्धिं संपाउणेज्जासि ॥१२॥