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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ९)
तो वंदिऊण पाए, चकंकुसलक्खणे मुणिवरस्स । आगासेऽणुप्पइओ, ललियचल कुंडलतिरीडी ॥ ६० ॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चाइओ । चइऊण गेहूं च वेदेही, सामण्णे पज्जुवट्टिओ ॥ ६१ ॥ एवं करेति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियति भोगेसु, जहां से नमी रायरिसि ॥ ६२ ॥ त्ति बेमि ॥
इति नमिपव्वज्जा णाम नवमं अज्झयणं समत्तं ॥ ९ ॥
॥ अह दुमपत्य दसमं अज्झयणं ॥
दुमपत्तए पंडुयए जहा, निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमाय ॥ १ ॥ कुसग्गे जह ओस बिंदुए, थावं चिठ्ठइ लंबमाणए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए || २ || इइ इत्तरियम्मि आउए, जोवियए बहुपच्चवायए । विहणाहि रयं पुरे कडं, समयं गोयम मा पमायए || ३ || दुल्ल खलु माणुसे भवे, चिरकालेण वि सव्वपाणिण । गाढा य विवाग कम्मुणा, समयं गोयम मा पमायए ||४|| पुढविकायम गओ उक्कोस जीवो उ संबसे ।
काल संखाईयं; समय गोयम मा पमायए ।। ५ ।।