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________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ४) जे गिद्धे कामभोएसु, एगे कूडाय गच्छइ । न मे दिठू परे लोए, चक्खूदिट्ठा इमा रई ॥ ५ ॥ हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया । को जाणइ परे लाए, अत्थि वा नत्थि वा पुणे ॥ ६ ॥ जणेण सद्धिं होक्खामि, इइ बाले पगब्भइ । .. काभभोगाणुराएण', केस सपडिवज्जई ॥ ७ ॥ तओ से दंड समारभई, तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्ठाए, भुयग्गाम विहिंसइ ॥ ८ ॥ हिंसे बाले मुसावाई, माइले पिसुणे सढे । .. भुजमाणे सुर मस, सेयमेयं ति मन्नइ ॥ ९ ॥ कायसा वायसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु । दुहओ मलं संचिणइ, सिसुणागु व्व मट्टियं ॥ १० ॥ तओ पुठ्ठी आय केग, गिलाणो परितप्पइ । पभीओ परलोगस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणी ॥ ११ ।। सुया मे नरए ठाणा, असीलाणं च जा गइ । बालाणं कूरकम्माणं, पगाढा जत्थ वेयणा ॥ १२ ।। तत्योववाइय ठाणं, जहा में तमणुस्सुयं । अहाकम्मे हिं गच्छतो, सेो पच्छा परितप्पइ ॥ १३ ॥ जहा सागडिओ, जाणं, समं हिच्चा महापहं । बिसम मग्ग ओइण्णा, अक्खे भग्गम्भि सोयइ ॥ १४ ॥ एवं धम्म विउकम्म, अहम्म पडिवज्जिया । बाले मच्चुमुह पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयइ ॥ १५ ॥
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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