SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३२) अतुट्ठिदासेण दुही परस्स, लाभाविले आययई अदत्त || १४ || तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुस बड्इ लाभदासा, , तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ९५ ।। मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरते । एवं अदत्ताणि समाययता, भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सा || भावापुरत्तस्स नरस्स एव कत्तो सुह होज कयाइ किंचि । तत्थवभागे वि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स कएण दुक्ख ॥। एमेव भावम्मि गओ पओस, उवेइ दुक्खाहपर पराओ । चित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणेो होइ दुह विवागे || भावे विरतो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्लरिणीपलास ।। ९९ ॥ एविंदियत्थाय मणस्स अत्था, दुक्खरस हेऊ मणुयस्स रागिणा । ते चैव धावं पि कयाइ दुक्ख', न वीयरागस्स करेति किंचि ॥ १०० ॥ न कामभोगा समय' उवेति, न यावि भोगा विगई उवेति । जे तप्पओसी य परिग्गही य, सेो तेसु मोहा विगई उवेइ || कोह च माणं च तव मायं, लोह दुगुच्छ अरई रई । हासं भयं सोगपुमित्थवेयं, नपुं सवेय विविहे य भावे ॥ १०२ ॥ आवज़ाई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन्य एयप्पभवे विसेसे, कारुण्णदीणे हरिमे वइस्से || १०३ ||
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy