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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन ३२)
१३९. रूवरस चक्खु गहणं वयंति, चक्खुस्स रूव गहण वयति । रागस्स हे समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ||२३|| रूवेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्व, अकालिय पावइ से विणासं । रागाउरे से जह वा पयगे, आलायलाले समुवेइ मच्चुं ||२४|| जे यावि दासं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुद्द तदासेण सण जंतू, न किंचि रूवं अवरुज्झई से ||२५|| एगतरत्ते रुइरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पओस । दुक्खस्स संपलमुवेई बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ||२६|| रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तट्टगुरू किलिट्टे ||२७||
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रुवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कह सुहं से, सभोगकाले य अतित्तलाभे ।। रूवे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तों न उबेइ तुट्ठि । अट्ठासेण दुही परस्स, लाभाविले आययई अदत्तं ||२९|| तहामिभूयस्स अदत्तहारिणा रूवे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुस वड़्ढइ लाभदासा,
तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ३० ।।
मासस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययता, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सा || रूवाणुरत्तस्स नरस्स एव कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किचि । तत्थवभागे वि किलेस दुक्ख,
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निव्बत्तई जस्स कएण दुक्ख ।। ३२ ।।