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________________ १४० ऊत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययनं ३२ ) एमेव रूवम्मि गओ पओस, उवेइ दुक्खाह पर पराओ । पट्टचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुह विवागे || रूवे विरत्तो मणुओ विसोगा, एएण दुक्खाहपर परेण । न लिए भवमज्झे वि संता, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ||३४| सायरस सद्द' गहण' वयति, तं रागहेउ तु मणुन्नमाहु | तं दास' अमणुन्नमाहु, समा य जो तेसु स वीयरागो ||३५|| सहस्स सायं गहणं वयंति, सोयरस सह गहण' वयंति । रागस्स हेउ समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ अमणुन्नमाहु ||३६|| सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालिय पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे, सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ||३७|| जे यावि दासं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्ख । दुदंतदासेण सएण जंतू न कि चि सद् अवरुज्झई से ||३८|| एग तरते रुरसि सद्दे, अतालिसे से कुणई पओस । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ||३९|| सद्दाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ गरूवे । चित्ते हि ते परतावेइ बाले, पीलेइ अतट्ठगुरू किलिट्ठ ||४०|| सहाणुत्राएण परिग्गण, उत्पायणे रकखणसन्निओगे । व विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ।। ४१ ।। स अतित्य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्टिदासेण दुही परस्स, लाभाविले आयथई अदत्तं ||४२ || तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । •
SR No.022569
Book TitleUttaradhyayan Sutra Mul Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
PublisherPurushudaniya Parshwanath SMP Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages200
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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