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________________ [ ३६ ] अपनी हस्ती रखता है तब तक उस छाया की हस्ती भी सापेक्ष दृष्टि से सच्ची है । जगत की वस्तुयें यह सत्य पदार्थ की अपूर्ण. तस्वीरें हैं। यह ठीक है, परन्तु यह मृग मरीचिका जैसी आभास मात्र नहीं है ।" इससे जैन दशन सत् पदार्थ का लक्षण “उत्पात व्यय और ध्रुव मानता है, वह अक्षरशः सत्य है, ऐसा अनुभव में आवेगा । इससे भी सत्यार्थ में देखा जा सकता है कि कोई भी वस्तु एकान्त मानने से उसका सम्पूर्ण स्वरूप देखा नहीं जा सकता । किन्तु जब उसको अनेकान्त दृष्टि से अवलोकन करेंगे, तभी वह सत्य रूप में देखा जा सकेगा । सामान्य विशेष 1 अब सामान्य विशेष के विषय में कुछ देखें । जैन - दर्शन सामान्य विशेष को पदार्थो का धर्म मानता है । उसको स्वतन्त्र पदार्थ नहीं मानता। धर्मी से धर्म कभी जुदा नहीं हो सकता । अतः सामान्य और विशेष को, जो पदार्थों से अलग मानते हैं उनकी मान्यता योग्य नहीं है । क्योंकि सामान्य विशेष पदार्थों अभिन्न रूप से हैं । जैन दर्शन के अनुसार सामान्य विशेष, यह पदार्थों का स्वभाव है। क्योंकि धर्म धर्मी का एकान्त भेद नहींहै 1 सामान्य विशेष को पदार्थों से सर्वथा भिन्न मानने से एक वस्तु में सामान्य विशेष सम्बन्ध बन नहीं सकता और यदि सामान्य विशेष को पदार्थों से सर्वथा अभिन्न माना जाय तो पदार्थ और सामान्य विशेष एकरूप हो जायेंगे। इससे दोनों में एक का अभाव मानना पड़ेगा। इससे तो सामान्य विशेष का व्यवहार भी नहीं बन सकेगा । क्यों कि सामान्य विशेष वस्तु की प्रतीति प्रमाण से भी सिद्ध होती है। इससे सामान्य और
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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