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________________ [३५] उत्पाद - व्यय और ध्रुवयुक्त हैं । जगत में कुछ भी नया उत्पन्न नहीं होता तथा न उसका समूल नाश होता है । पदार्थों का जो रूपान्तर होता है उसी का अर्थात् पर्याय का नाश होता है । वस्तु का मूलतत्वा तो हमेशा कायम रहता है । महात्मा गांधी जी स्याद्वाद के सिद्धान्त के विषय में अभिप्राय देते हुये कहते हैं, "यह जगत परिवर्तनशील है । फिर मुझे भले ही कोई स्याद्वादी कहे " स्वामी रामतीर्थ तो जगत-ईश्वर ने बनाया," ऐसा कहने वाले का उपहास करते हुये कहते हैं कि ऐसा कहने वाले घोड़े के आगे गाड़ी रखते हैं ।" फिर कहते हैं "परमेश्वर ने जगत बनाया तब किसी स्थान पर खड़े रहकर ही बनाया होगा, पानी होगा । पांच भूत भी होंगे। तब ईश्वर ने बनाया क्या ?" संक्षिप्त में कहा जाय तो यह जगत किसी ने बनाया नहीं है, वह अनादि काल से चला आता है। *, जैन-तत्व - सार-सारांश इस नाम की मैंने पुस्तक लिखी । उसमें स्याद्वाद के लिये तत्वज्ञ पुरुषों ने जो अभिप्राय दिये हैं, वे दिखलाये हैं । उसी में से यह लिखा गया है । ] जगत में केवल ब्रह्म ही सत् है और शेष असत्य है, यह मान्यता भी बुद्धि गम्य नहीं होती है । उसके लिये प्रसिद्ध प्रो० श्री राधाकृष्णन् अपने “ उपनिषदों का तत्वज्ञान" पुस्तक में लिखते हैं कि पदार्थों की अनेकता, स्थान और काल का भेद कार्य कारण सम्बन्ध, दृश्य और अदृश्य का विरोध यह उपनिषद मतानुसार परम सत्य नहीं है ऐसा हम स्वीकार करते हैं । किन्तु ऐसा कहने का यह अर्थ नहीं होता कि यह तत्व विद्यमान है । यानि उसकी हस्ती ही नहीं है ।" पुनः वे आगे कहते हैं, हम जगत के सब जीवों को तथा बस्तुओं को किसी पदार्थ की छाया रूप माने तो भी जब तक वह पदार्थ सचमुच ޔ
SR No.022554
Book TitleSyadvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Dahyabhai Kapadia, Chandanmal Lasod
PublisherShankarlal Dahyabhai Kapadia
Publication Year1955
Total Pages108
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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